दरभंगा। मनीगाछी प्रखंड मुख्यालय से करीब चार किलोमीटर दूर टटुआर गांव। स्वास्थ्य व्यवस्था में पिछड़े इस गांव के लोगों की एकमात्र उम्मीद डा. विजेंद्र मिश्रा हैं। वे दरभंगा मेडिकल कालेज एवं अस्पताल (डीएमसीएच) में सर्जरी विभाग में तैनात हैं। इसके बावजूद हर रविवार गांव में पहुंचते हैं। बीमार लोगों की जांच कर जरूरी दवा उपलब्ध कराते हैं। यह सिलसिला वर्ष 2006 से जारी है। डीएमसीएच में व्यस्तता और गांव से दूरी बढऩे के बावजूद लोगों की सेहत का ख्याल रखते हैं। वे फोन पर भी उपलब्ध रहते हैं।
15 साल से कर रहे इलाज
गांव की करीब छह हजार की आबादी मनीगाछी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के भरोसे है। ग्रामीण रामरूप राम बताते हैं कि टटुआर में लंबे समय से अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (एपीएचसी) का भवन प्रस्तावित है। वर्ष 1994 में डा. विजेंद्र की बतौर प्रभारी तैनाती हुई थी। उस दौर में एक आवासीय मकान से ही अस्पताल का संचालन होता था। वर्ष 2006 में उनका ट्रांसफर डीएमसीएच हो गया। इसके बाद किसी की तैनाती नहीं हुई। गांववालों से उन्हें इसकी जानकारी मिलती रही। इसके बाद उन्होंने हर रविवार गांव में आकर इलाज करना शुरू कर दिया।
गांव के लोगों को रहता इंतजार
डा. विजेंद्र बताते हैं कि रविवार को अवकाश होने की वजह से गांव में जाने का समय मिल जाता है। प्रति सप्ताह 20 से 25 लोगों का इलाज और दवा देते हैं। गंभीर मरीजों को डीएमसीएच या निजी अस्पताल में इलाज कराते हैं। यह दौर कोरोना काल में भी चलता रहा। फोन पर लोगों को जरूरी सलाह देते हैं।
पंचायत भवन में शिफ्ट कर दिया गया अस्पताल
ग्रामीण विद्यानंद झा बताते हैं कि गांव में स्वास्थ्य सेवा की आस वर्षों से है। उन महिलाओं का दर्द जानिए, जिन्हें प्रसव पीड़ा होती है और उस अवस्था में चार किमी दूर मनीगाछी या करीब 40 किमी दूर डीएमसीएच जाना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि अस्पताल के लिए जमीन उपलब्ध कराई गई है पर राशि और जमीन से संबंधित कागजात में पेच के कारण निर्माण नहीं हो रहा है। अभी यह गांव के एक पंचायत भवन में बिना चिकित्सक के है। एक एएनएम कभी-कभार पोलियो की खुराक पिलाने आती है।
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