केकेके क्षत्रिय पुस्तकालय राष्ट्रीय फलक पर लाने की कवायद तेज, समाज बुद्धिजीवियों से सहयोग की अपेक्षा
बिहारशरीफ। उदन्तपूरी की धरती पर बसा गढ़पर किलापर स्थित के के के क्षत्रिय हितैषी पुस्तकालय का 88 वां वार्षिक उत्सव रविवार को पुस्तकालय परिसर में धूमधाम से मनाया गया है। इसमें जिले के कोचैसा समाज के बुद्धिजीवी, प्रबुद्धजनों, महिलाओं व युवाओं की बड़ी संख्या में सहभागिता रही। लोगों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। इस पुस्तकालय की नींव 1935 में रखी गई थी। संस्थापक के रुप में बकरा के स्व. बोधनारायण प्रसाद, धनवान के स्व. मुरलीधर नारायण प्रसाद, मनारा के स्व. मंगल दयाल सिंह व जोधन विगहा के स्व. केशर प्रसाद हैं।
मंच संचालक अश्विनी चन्द्र ने बताया कि वर्तमान में मौजूद पुस्तकालय की इमारत समाज के प्रति उनकी सकारात्मक सोच और समझ को प्रदर्शित करती है। वो उस समय जब किसी तरह की कोई साधन और संसाधन नहीं थी। किसी तरह की समाजिक, आर्थिक व राजनैतिक सहयोग भी नहीं होने के बाबजूद पुस्तकालय का निर्माण किया गया। जो समाज के प्रति काफी सजग प्रहरी के रुप में कार्य किया है।
यह तीन मंजिला पुस्तकालय हैं। भूतल में वाचनालय, कार्यालय हैं। पहली मंजिल पर छात्रावास है। जिसमें मेधावी छात्रों की आवासीय व्यवस्था है। एक अतिथि गृह है। दूसरी मंजिल खुला हुआ है। जिसमें मीटिंग आदि कार्य किया जाता है। इसमें 21 छात्र रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। इसमें 4 दैनिक समाचार पत्र, रोजगार समाचार पत्र एवं 25 पत्रिकाएं नियमित रूप से आती हैं। इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है। वाचनालय में बैठकर पढ़ने के लिए टेबल कुर्सी उपलब्ध है। परिसर में ही भोजनालय की सुविधा उपलब्ध है। पारिवारिक अतिथि कक्ष हैं। जिसमें समाज के कोई भी व्यक्ति वांछित शुल्क देकर रात्रि विश्राम कर सकते हैं।
पुरस्कार व मेधा छात्रवृत्ति :
पुस्तकालय के तरफ से समाज के मेधावी और प्रतियोगिता में अब्बल छात्रों को कई तरह के पुरस्कार दी जाती है। मेधा छात्रवृत्ति योजना के तहत मैट्रिक स्तरीय 4 छात्रों को 500रुपया प्रति वर्ष दिया जाता है। छात्रावासी छात्र सहायता योजना से पुस्तकालय में रहने वाले छात्रों की आर्थिक कठिनाईयों को दूर की जाती है। अध्यक्ष अनिल कुमार ने कहा कि पुस्तकालय के खाली जमीन पर दूकान और मैरेज हॉल बनाने के प्रस्ताव रखा, जिसपर सभी ने ताली बजा कर सहमति जताई। सचिव सिद्धेश्वर प्रसाद आर्य ने पुस्तकालय के वार्षिक उत्सव के अवसर पर कोचैसा कुर्मी को संगठित करने और पुस्तकालय से जोड़ने और जुड़ने का आहवान किया गया। प्रणव प्रकाश ने इस समाज को राजनैतिक उत्थान पर जोर देते हुए अपनी सहभागिता देने की आग्रह किया। जबतक राजनैतिक स्तर पर सक्रिय नहीं होंगे तबतक इस समाज का विकास संभव नहीं है। कौशलेंद्र कुमार उर्फ छोटे मुखिया ने भी समाज को हर तरह की मदद करने आश्वासन दिया। नाहूव के श्याम सुंदर प्रसाद ने कहा कि बूजूर्गो द्वारा दी गई इस धरोहर को हम सभी को मिलजुल कर संरक्षित करने और उनकी सोच को आगे बढ़ाने की जरूरत है। समाज के पढ़े लिखे, प्रबुद्धजन जो बड़े बड़े पदों पर आसीन हैं। उनका भी इस पुस्तकालय के विकास में सहयोग और सहभागिता होनी चाहिए।
प्रो रामाशीष प्रसाद ने बताया कि इस पुस्तकालय को राष्ट्रीय स्तर का पुस्तकालय होना चाहिए था। जिसकी पहचान आज अपने ही शहर में गुम हो कर रह गया है। इसकी वजह लोगों की उपेक्षा और एकजुटता की कमी प्रदर्शित करती है। एक समय था, जब इस पुस्तकालय का पेपर कटिंग लेकर वाराणसी से कुछ लोग आये थे। आज अपनी पहचान अपने लोगों तक सीमित है। जरुरत है तो सहयोग और सहभागिता की, मार्गदर्शन की। केकेके क्षत्रिय पुस्तकालय को राष्ट्रीय फलक पर लाने की कवायद करते हुए समाज के बुद्धिजीवीयों से सहयोग की अपेक्षा की है।
समिति का चुनाव
अध्यक्ष – अनिल कुमार
उपाध्यक्ष – डा परमानन्द कुमार,सरयूशरण प्रसाद, कुमारी शकुन्तला सिन्हा
सचिव – सिद्धेश्वर प्रसाद आर्य
उपसचिव – सरिता मणि प्रो श्याम किशोर प्रसाद, कृष्णदेव प्रसाद, सत्यप्रकाश
कोषाध्यक्ष – मनोज कुमार
कार्यकारिणी सदस्यगण
नौरंगा बिंद के जानकी शरण सिंह, नीरपुर नालन्दा के गिरवरधारी सिंह, गंगटी बेन प्रमोद कुमार सिन्हा, लोदीपुर नगरनौसा के अंजुला सिन्हा, प्रेमन विगहा के अश्विनी चन्द्र, अमरौरा चंडी के भूषण कुमार, भैंसासूर की मंजू कुमारी, हसनपुर राजगीर के कपिलदेव सिंह, गोरौर राजगीर के निरंजन कुमार, कोकलकचक के परमानन्द प्रसाद, जलालपुर नूरसराय के राजेश्वर प्रसाद, लकैयापर बेन के वीरमणि प्रसाद, फजिलापूर के संतोष कुमार शामिल हैं।
इस कार्यक्रम में जगदीश प्रसाद, अरविंद प्रसाद, मिथलेश कुमार, धर्मेंद्र कुमार बाडेकर, अनिल कुमार, प्रशांत कुमार,प्रो दिनेश प्रसाद,अरूण कुमार,ललन प्रसाद, मुक्ता जी, प्रणव प्रकाश, कौशलेंद्र कुमार उर्फ छोटे मुखिया, श्रवण कुमार, कैलाश प्रसाद, रविन्द्र प्रसाद वीर अभिमन्यु सिंह समेत हजारों लोग शामिल हुए।