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अभी गर्मी शुरू हुई और जंगलों में आग लगना शुरू हो गया

रजौली/नवादा। मुख्यालय क्षेत्र में इन दिनों रजौली के जंगलों में आग लगने शुरू हो गई है, लेकिन वन विभाग आग पर काबू पाने में सफल नहीं हो पा रहा है। जंगलों के बेतहाशा कटाई के बाद बड़े पैमाने पर आग लगने से जंगल के वजूद पर ही खतरा मंडरा रहा है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर रजौली वन क्षेत्र काफी मन मोहक है। वनों कि खूबसूरती देखते बनती थी, पर यही खूबी यहां के जंगलों के विनाश का कारण बन रहा है। जंगल अब अपनी पहचान ही खोते जा रहे हैं। सिमटते जंगल का असर अब रजौली की जलवायु पर दिखाई देने लगा है। तेजी से बढ़ते तापमान और बारिश के घटते औसत से पर्यावरण प्रेमियों और जानकारों के माथे पर चिंता की लकीरें खींचती जा रही है। आग और अवैध कटाई से वनों के अस्तित्व की रक्षा करने में वन विभाग की नाकामी से लोगों में अब खासी नाराजगी देखी जा रही है। रजौली में गर्मी के दस्तक के साथ ही जंगल में आग लगने का सिलसिला भी शुरू हो चुका है। आग से जंगलों को बचाने के सरकारी दावों से अलग जंगल में लगने वाली आग को बुझाना तो दूर वन विभाग को कई दिनों तक इसकी खबर तक नहीं लग पाती। कभी विभाग दावा करता है कि जंगल में लगी आग को बुझाने के लिए उसके सूचना आती है, पर इस सूचना के बाद जंगल में लगी आग को बुझाते तो विभाग को कभी कहीं देखा नहीं गया है। जंगल मे कई कारणों से आग लगाते हैं।ग्रामीणों द्वारा जंगल से महुआ बिनने के नाम पर आग लगाया जाता है। ग्रामीणों के मुताबिक जंगल के पत्तों में पेड़ से गिरे महुआ के फूल नहीं दिख पाते और पत्तों को साफ करने के चक्कर में ग्रामीण जंगल में आगजनी करते हैं। इसी प्रकार बरसात के दिनों में जंगल में उगने वाले मशरूम भी जंगलों के अस्तित्व पर भारी पड़ रहे हैं। ग्रामीणों द्वारा गरमी के दौरान जंगल में राख फैलाने के लिए आगजनी की जाती है ताकि बरसात के दिनों में पत्तों के सड़ने से अधिक से अधिक मशरूम उन्हें मिल सके।जंगल में आग लगाने की यह अनोखी परंपरा जंगलों के अस्तित्व पर बहुत भारी पड़ते नजर आ रहे हैं। लेकिन इन दिनों यहां के दुर्लभ एवं औषधीय वनस्पतियां हैं। आग एवं प्राकृतिक संसाधनों के अति दोहन के कारण यहां का प्राकृतिक सौंदर्य नष्ट होता जा रहा है। यदि दिनों-दिन प्रकृति का अवैध दोहन होता रहे तो कुछ ही दिनों में वनस्पतियों का अस्तित्व ही मिट जाएगा। हालांकि अब देखना यह है कि जंगल में आग पर काबू वन विभाग लगा पाती है या नहीं। जंगल में महुआ के मौसम में जंगल में आग की लपटें भी तेज हो रही है।जंगलों से हर क्षेत्र में आग की लपटें देखी जा सकती है। दरअसल महुआ चुनने की कवायद शुरू होने के साथ ही जंगल में आग लगा दी जाती है। गर्मी का मौसम आते ही महुआ के फूल को प्राप्त करने के लिए क्षेत्र के जंगल में आग लगा दी जाती है। लोगों का कहना है पतझड़ के बाद जंगल में काफी सूखे पत्ते पड़े रहते हैं। इससे महुआ के फूल को चुनने में परेशानी होती है। लेकिन अप्रैल एवं मई महीनों में जंगलों में भीषण आग की लपटें दिखती है। यह सिलसिला वर्षों से बदस्तूर जारी है। हालांकि सच्चाई है कि जंगलों में आग लगने से पेड़-पौधे तो नष्ट होते ही हैं। इसके साथ-साथ वन्य जीवों पर भी असर पड़ता है। लेकिन वन विभाग आज भी दावा करती है कि ग्रामीणों को जागरुक किया जाएगा। आज तक जंगलों में लगी आग पर काबू पाने का कोई ठोस उपाय नहीं किए गए हैं। वहीं भारतीय वन अधिनियम 1927 के अंतर्गत आरक्षित वनों में आग लगाना या किसी वस्तु को जलता छोड़ना जिससे वन को खतरा हो, एक दंडनीय अपराध है।इसके लिए छह महीने तक की जेल, एक हजार रुपए जुर्माना,आग लगने से जंगल को हुए नुकसान की भरपाई को वसूलने के साथ-साथ उस व्यक्ति पर चारागाह या वन उपज के सभी अधिकारों को स्थगित करने का प्रावधान है।

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