जंगल मे खोदे गये चुआं से बुझती है आदमी और जानवरों की प्यास
रजौली/नवादा। तापमान बढ़ने के साथ ही रजौली के जंगली क्षेत्र में पेयजल संकट गहरा गया है। हालत यह है इन लोगों को अभी से ही पानी के लिए चुआं खोदना पड़ रहें है। इन चुआं से ही आदमी और जानवर दोनों की प्यास बुझती है। प्रखंड के हरदिया पंचायत के सुदूरवर्ती गांव डेलवा और चोरडीहा गांव में इन दिनों पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है। गांव के लोग चुआं खोदकर कर पानी-पीने को मजबूर हैं। गांवों में रहने वाले लोगों ने कई बार पत्र लिखकर अधिकारियों से गांव के लिए पंपिंग पेयजल योजना बनाने की गुहार लगाई है। लेकिन उनके मांगाें की लंबे समय से अनदेखी की जा रही है।लोगों का कहना है कि कई बार अधिकारी से लेेकर जनप्रतिनिधियों के समक्ष चापाकल लगाने की भी गुहार लगाई। लेकिन उनके कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। रजौली प्रखंड मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर बसा हुआ है। जहां जाने के लिए सड़क नहीं है। गांव जाने के लिए पगडंडियों का सहारा लिया जाता है। बरसात के मौसम में गांव वाले नाव के सहारे फुलवरिया जलाशय पार कर अपने गांव पहुंच पाते हैं। गांव के आसपास प्राकृतिक स्रोत भी नहीं हैं। गर्मी बढ़ते हीं नदी नाले सूखने के कगार पर है। वहीं डेलवा और चोरडीहा के ग्रामीण बताते हैं कि हमलोग गड्ढे कर चुआं बनाते हैं और उसी का पानी पीते हैं। जिसके कारण कई तरह के रोगों का शिकार होना पड़ता है। हमें पीने के लिए शुद्ध पानी नसीब नहीं होता है। सदियों बीत गई है, लेकिन इस गांव का कायाकल्प नहीं हुआ है। यहां के लोग आदि काल में ही जी रहे है। ग्रामीण कालो देवी कहती है कि चुनाव के दौरा में वादे करते हैं कि जंगली क्षेत्र के गांव में पानी दिया जाएगा,लेकिन अब-तक पानी नहीं पहुंची इसलिए चुआं से पानी लेने पर मजबूर हो रहे हैं। डेलवा गांव निवासी सतेंद्र कुमार ने बताया कि जंगली क्षेत्र के गांव में पानी का सुविधा के लिये सरकार के द्वारा कोई जनप्रतिनिधि के द्वारा कोई उपाय नहीं किया गया है।जंगली जानवर भी इसी चुआं का पानी पीते हैं और हमलोग भी यहीं चुआं का पानी-पीना पड़ता है। ज्यादा गर्मी पड़ने के कारण चुआं भी सुख जाता है। जिससे कठिनाई का सामना करना पड़ता है।