ब्रेकिंग
विराट नाम बताकर लड़की से की थी दोस्ती, इंदौर में हिंदू संगठनों ने नदीम को पकड़ा भोपाल की बंद फैक्ट्री में हर दिन बनाई जा रही थी 25 किलो ड्रग्स कटनी में कार ने मारी मोटरसाइकिल सवार को टक्कर... दादा-दादी व नाती की मौके पर मौत रिस्तेदार ने नहाते समय युवती किया दुष्कर्म, मूक बधिर पीड़िता ने इशारों में बताई घटना भारत की पहली सामान्य AC ट्रेन Vande Metro का ट्रायल, कोटा से वाया उज्जैन-इंदौर, रतलाम तक संचालन संभव गरबा पंडाल से लौट रहे दंपति से मस्जिद के पास मारपीट, दो पक्ष आमने-सामने, 7 पर केस दर्ज भिंड में 12 दिन पहले हुई महिला की हत्या के मामले में बड़ा खुलासा, पति ही निकला हत्यारा शिवपुरी जिला अस्पताल में मरीज की मौत,परिजनों ने हंगामा कर डॉक्टर को घेरा भिंड में संदिग्ध परिस्थितियों में युवक को लगी गोली ,हुई मौत इंदौर में डेंगू मच्छर के भोज का आयोजन, चर्चा में कांग्रेस का अनोखा विरोध प्रदर्शन

रविवार को रखा जाएगा कोकिला व्रत जानिए इसकी पूजा विधि शुभ मुहूर्त और व्रत कथा

 हिंदू धर्म में आषाढ़ महीने की पूर्णिमा का काफी महत्व है। इस दिन गुरु पूर्णिमा और मां लक्ष्मी और विष्णु जी की पूजा के साथ कोकिला व्रत रखा जाता है। इस साल कोकिला व्रत 2 जुलाई रविवार को रखा जाएगा। शादीशुदा महिलाएं अपने अच्छे दांपत्य जीवन की कामना के लिए और कुंवारी लड़कियां इस व्रत को मनभावन पति पाने के लिए रखती हैं। इस दिन भगवान शिव जैसा पति पाने की कामना महादेव और माता सती से की जाती है। आइए जानें कोकिला व्रत का शुभ मुहूर्त, और पूजा विधि और व्रत कथा।

कोकिला व्रत का शुभ मुहूर्त क्या है?

आषाढ़ पूर्णिमा की तिथि 2 जुलाई को रात 8 बजकर 21 मिनट से शुरू होगी और 3 जुलाई को शाम 5 बजकर 28 मिनट पर समाप्त होगी। कोकिला व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त रात 8 बजकर 21 मिनट से शुरू होगा, जो कि 9 बजकर 24 मिनट तक रहेगा। करीब 1 घंटे तक भगवान शिव और माता सती की पूजा के लिए उत्तम मुहूर्त रहेगा।

कोकिला व्रत की पूजा विधि क्या है?

पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें। इसके बाद मंदिर जाकर भगवान शिव का गंगाजल और पंचामृत से अभिषेक करें। विधि-विधान से भांग, धतूरा, बेलपत्र, फल अर्पण कर शिवजी और सती माता का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें। पूजा के दौरान शिव को सफेद फूल और माता सती को लाल रंग के फूल चढ़ाएं। इसके बाद धूप और घी का दीपक जलाकर आरती करें और कथा पढ़ें। व्रत के दौरान दिनभर कुछ भी न खाएं, शाम के समय पूजा और आरती करने के बाद फलाहार कर सकते हैं। इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जा सकता है। इस तरह पूजा करने से भगवान शिव और माता सती का आशीर्वाद प्राप्त होता है और दांपत्य जीवन सुखी रहता है।

कोकिला व्रत कथा

माता सती राजा दक्ष की पुत्री थीं। राजा दक्ष को भगवान शिव बिल्कुल भी पसंद नहीं करते थे, लेकिन वे श्रीहरि के भक्त थे। जब माता सती ने शिव से विवाह की बात अपने पिता से कही तो वे इसके लिए तैयार नहीं हुए। सती ने हठपूर्वक भगवान शिव से ही विवाह किया। इस बात से नाराज होकर राजा दक्ष ने अपनी बेटी सती से सारे रिश्ते तोड़ दिए। राजा दक्ष ने एक बार बड़े यर् का आयोजन किया लेकिन उसमें अपनी बेटी और दामाद को नहीं बुलाया। माता सती, शिव जी से पिता के घर जाने की जिद करने लगीं और राजा दक्ष के घर पहुंच गईं। इस दौरान दक्ष ने अपनी बेटी का अपमान किया, साथ ही अपने दामाद शिवजी के लिए भी अपशब्दों का इस्तेमाल किया।

इस बात पर सती ने क्रोधित होकर यज्ञ कुंड में कूदकर अपनी जान दे दी। भगवान को जब ये पता चला तो उन्होंने माता सती को श्राप दिया कि जिस तरह से उन्होंने अपने पति की इच्छा के खिलाफ जाकर काम किया उसी तरह उनको भी शिव का वियोग सहना होगा। जिसके बाद माता सती को करीब 10 हजार सालों तक कोयल बनकर वन में रहना पड़ा था। इस दौरान कोयल के रूप में उन्होंने भोलेनाथ की आराधना की। जिसके बाद उन्होंने पर्वतराज हिमालय के घर में पार्वती के रूप में जन्म लिया और उनको एक बार फिर से पति के रूप में प्राप्त किया।

डिसक्लेमर

‘इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।’

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.