पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है कोकिला व्रत जानिए इसकी तिथि और पूजन विधि
हिंदू धर्म में आषाढ़ माह का बहुत महत्व है। यह महीना भगवान विष्णु, सूर्य देव और देवी दुर्गा को समर्पित होता है और इसे कामना पूर्ति का महीना कहा जाता है। इस माह में किए गए व्रत, साधना, तीर्थ, प्रार्थना, जप, तप आदि जल्द सिद्ध हो जाते हैं। आषाढ़ मास की अंतिम तिथि को कोकिला व्रत रखा जाएगा। इस बार यह उपवास 02 जुलाई को रखा जाएगा, जिसका शुभ मुहूर्त शाम 8:21 से शुरू होकर 3 जुलाई सुबह 5:08 तक है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन किया जानेवाला ये व्रत कुंवारी कन्याओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूरी श्रद्धा के साथ कोकिला व्रत करने से कुंवारी कन्याओं को योग्य और सर्वगुण संपन्न पति मिलता है। आइये इंदौर के पंडित चंद्रशेखर मलतारे से जानते हैं इस व्रत की कथा और पूजन-विधि
कोकिला व्रत की कथा
शास्त्रों में बताया गया है कि कोकिला व्रत पहली बार माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को पति रूप में प्राप्त करने के लिए किया था। पति से हठ कर दक्ष के यज्ञ समारोह में जाने की वजह से भगवान शंकर, सती से नाराज हो गये और दस हजार सालों तक कोयल बनकर भटकने का श्राप दे दिया। इसी वजह से पार्वती रूप में जन्म लेने से पहले पार्वती, कोयल का जन्म लेकर पूरे दस हजार सालों तक नंदन वन में भटकती रही थीं। श्राप से मुक्ति पाने के बाद पार्वती ने कोयल की श्रद्धा पूर्वक पूजा की। इस पूजा के प्रताप से भगवान शिव प्रसन्न हुए और पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
कोकिला व्रत का महत्व
कोकिला व्रत करने से विवाहित महिलाओं के पति को उन्नति और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है। वहीं, अविवाहित लड़कियां अच्छे वर के लिए इस व्रत को करती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये व्रत करने से ना सिर्फ जल्दी शादी होती है, बल्कि सुयोग्य वर की प्राप्ति भी होती है। अगर अधिक मास में कोकिला व्रत किया जाए तो यह है और भी ज्यादा फलदायी होता है। इस व्रत को करने से घर में वैभव और सुख की भी वृद्धि होती है।
कोकिला व्रत: पूजन विधि
अगर कोकिला व्रत करना चाहती हैं, तो सुबह गंगाजल डालकर पानी से स्नान करें और सूर्य देवता को अर्घ्य दें। एक चौकी पर नया कपड़ा बिछाकर भगवान शिव और पार्वती जी की प्रतिमा को स्थापित करें। फिर इनकी फल-फूल, मिष्टान्न आदि से इनकी विधिवत पूजा करें। दिनभर उपवास रखने के बाद शाम को आरती करके फलाहार करें। इस दिन स्नान करने के पश्चात सुगन्धित और खुशबूदार इत्र लगाना चाहिए। चांदी या लाख की बनी कोयल को पीपल के पेड़ में रखकर विधि-विधान से पूजा करें। बाद में ब्राह्मण या सास-ससुर को कोयल का दान करना चाहिए।
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