इंदौर में बोले राहुल रवेल- दिल में उठ रहे सवालों के जवाब जरूर पूछ लेना चाहिए
इंदौर। फिल्म जोकर की शूटिंग के दौरान पहली बार ऋषि कपूर के साथ जाकर राज कपूर साहब को फिल्म का निर्देशन करते हुए देखा। उन्हें देखकर मैं दंग रह गया कि कैसे एक अकेला व्यक्ति पांच हजार लोगों को संभाल रहा है। यह दृश्य मेरे लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं था। मैं उसके बाद लगातार कुछ दिनों तक फिल्म की शूटिंग देखने सेट पर जाता रहा। वहीं मुझे कुछ महीनों बाद कनाडा पढ़ाई के लिए जाना था, लेकिन राज (कपूर) जी से मैं इतना प्रभावित हुआ कि मैंने अपने घर पर बोला कि अभी कनाडा जाने में समय है, तो क्या इस बीच राज कपूर जी के साथ काम कर सकता हूं? इसके बाद मेरे पापा मुझे राज जी के पास ले गए।
यह बात फिल्म निर्देशक राहुल रवेल ने सुचित्रा साजिद धनानी से चर्चा के दौरान कही। वे प्रभा खेतान फाउंडेशन और अहसास वुमन आफ इंदौर के साझा प्रयास से आयोजित ‘कलम : अपनी भाषा, अपने लोग’ कार्यक्रम में बतौर वक्ता मौजूद थे। नईदुनिया से प्रिंट मीडिया पार्टनरशिप व श्री सीमेंट की कार्पोरेट सोशल रिस्पांसबलिटी पहल के तहत हुआ यह आयोजन होटल शैरेटन ग्रैंड पैलेस में हुआ। अतिथि स्वागत सुरभि धूपर ने किया। आभार उन्नति सिंह ने माना।
राजकपूर जी जैसा दूजा कोई नहीं
निर्देशक व लेखक राहुल रवेल ने आगे कहा कि राज (कपूर) जी जैसा कोई दूसरा डायरेक्टर नहीं हो सकता, उन्हें हर चीज का ज्ञान था। उनके काम करने का तरीका बहुत अलग था। वे हर छोटी से छोटी चीज का ध्यान रखते थे। फिल्म के एक-एक सीन को बेहद बारीकी से शूट करते थे। मुझे उन्होंने एक मंत्र सिखाया था, जो मैं आज भी फालो करता हूं। वह यह कि आपके दिल में जो भी सवाल आए, उसका जवाब जरूर पूछ लेना, क्योंकि अगर पूछोगे नहीं तो बाद में सोचोगे कि इसका उत्तर पूछ लेना चाहिए था।
खाने के शौकीन थे राज कपूर
राज कपूर साहब खाने के बहुत शौकीन थे और खाने के मामले में वे प्रयोग भी बहुत करते थे। एक बार वे मक्खन लगे पाव के बीच जलेबी रखकर उसे टोमाटो सास में डुबाकर खा रहे थे। मैं चौंका तो बोले, ये नहीं करना है ऐसा कहीं लिखा है क्या? वे हर रात चैंबूर स्टेशन जाकर इडली, वड़ा पाव, भजिए इत्यादि खाते थे। किसी को रात में उनसे मिलना होता था, तो वह चैंबूर स्टेशन पहुंच जाता था।
फिल्म निर्देशक ने इन सवालों के दिए जवाब
प्रश्न- आपने राजकपूर के साथ कौन-कौन सी फिल्मों में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम किया है?
उत्तर- उनके साथ मेरा नाम जोकर और बॉबी में काम करने का मौका मिला। बॉबी मेरे लिए वो फिल्म थी, जिसमें मेरा राज साहब के साथ सबसे अधिक कनेक्शन जुड़ा। मेरा नाम जोकर जब नहीं चली तो उनके असिस्टेंट, डिस्ट्रीब्यूटर, टीम के बाकी लोग सब छोड़कर चले गए। उनके पास सिर्फ मैं था, तो फिल्म में प्रोडक्शन मैनेजर, असिस्टेंट मैनेजर, असिस्टेंट एडिटर और बहुत सारे काम अकेले मैं ही देखता था। मैं चाहता तो राज साहब को बोलकर असिस्टेंट रख लेता, लेकिन मैंने अकेले काम करना तय किया।
प्रश्न- उनके साथ काम करके सबसे बड़ी सीख क्या मिली?
उत्तर- राज साहब से सबसे बड़ी सीख मिली कि जब भी कोई दिल में सवाल आए, तो वो जरूर पूछना चाहिए। पूछोगे नहीं तो जवाब कभी नहीं मिलेगा। दूसरी बात यह अच्छी लगती थी कि उनकी सारी जिंदगी फिल्म के ऊपर चलती थी, उसके अलावा वे कुछ नहीं सोचते थे। उन्होंने सिखाया था कि शूटिंग के समय कोई भी जूनियर या सीनियर नहीं है। इसके चलते कई बार जब वो हीरो के जूते साफ करने के लिए बोलते, तो मैं खुद जाकर साफ कर देता।
प्रश्न- आपने अपनी किताब में बॉबी के कई चैप्टर लिखे हैं, इसके पीछे का क्या कारण है?
उत्तर- बॉबी फिल्म में मैंने शुरू से अंत तक काफी काम किया। तब राज जी के साथ अधिक से अधिक चीजें सीखीं, इसलिए किताब में उनका ज्यादा जिक्र है।
प्रश्न- राज कपूर और यश चोपड़ा, दोनों लव स्टोरी बनाते थे। दोनों के काम में क्या अंतर था?
उत्तर- राज कपूर की फिल्मों में सोशल कमेंट होता था, जबकि यश चोपड़ा शुद्ध रोमांटिक फिल्म बनाते थे।
प्रश्न- आंतरिक राजनीति के तनाव को कैसे खत्म करते हैं?
उत्तर- तनाव को खत्म करने का मेरा एक आसान फार्मूला है कि मेरे मन में जो आता है, उसे बोल देता हूं। तनाव बहुत बड़ी चीज है, लेकिन आपको उससे डील करना पड़ेगा। इसके लिए आपको लोगों के बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहिए। उनका काम है कहना और वो कहते रहेंगे।
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