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भोपाल में डेंगू का प्रकोप बढ़ा, 360 से ऊपर पहुंचा मरीजों का आंकड़ा

भोपाल। राजधानी में डेंगू मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अस्पतालों में डेंगू संदिग्धों की लंबी कतार लगी हुई है, लेकिन मलेरिया विभाग इसे एलाइजा जांच के अभाव में मानने से इंकार कर रहा है। दरअसल, विभाग निजी अस्पतालों द्वारा की गई डेंगू की जांच को सही नहीं मानता। मलेरिया विभाग रैपिड कीट या अन्य माध्यमों की जांचों को सही नहीं मानता है। इसी कारण से अभी तक भोपाल की सरकारी रिकार्ड के अनुसार डेंगू के 6 मरीज ही भर्ती हैं, जबकि हकीकत यह है कि निजी अस्पतालों में डेंगू संदिग्धों की संख्या इससे कहीं अधिक है।

सरकारी आंकड़ों की बात करें तो राजधानी में डेंगू के अब तक 368 मामले आ चुके हैं, पर निजी अस्पतालों के आंकड़े जोड़ ले तो मरीजों की संख्या दोगुना से ज्यादा होगी। निजी अस्पताल डेंगू के लक्षण वाले मरीजों की जांच के लिए कार्ड टेस्ट या रैपिड टेस्ट करते हैं। रिपोर्ट पाजीटिव आने पर डेंगू मानकर इलाज किया जाता है, लेकिन इनकी रिपोर्ट मलेरिया विभाग को नही भेजी जाती है।

शहर में किस महीने कितने मरीज

माह — मरीज

जनवरी19

फरवरी17

मार्च26

अप्रैल11

मई15

जून07

जुलाई16

अगस्त58

सितंबर160

अक्टूबर31

इसलिए एलाइजा टेस्ट मुश्किल

निजी अस्पताल के अस्पताल प्रबंधन की मानें तो एलाइजा टेस्ट की रिपोर्ट में 24 घंटे से ज्यादा समय लगता है, जबकि कार्ड से तत्काल परिणाम आ जाता है। डेंगू के कारण मरीज की प्लेटलेट्स तेजी से कम होती है। ऐसे में 24 घंटे तक रिपोर्ट के इंतजार में उपचार को रोकने से मरीज की परेशानी बढ़ सकती है।

डेंगू के लक्षण

बुखार के साथ सिर दर्द, आंखों के पीछे और मांसपेशियों में दर्द, जोड़ों में दर्द, शरीर पर लाल चकते। सामान्य बुखार आने के पहले पांच दिन की अवधि में एंटीजन वेस्ट किट से एलाइजा टेस्ट कराएं, पांच दिन बाद एंटीबाडी टेस्ट कराएं।

उपचार

डेंगू की पुष्टि होने पर आराम करें। एस्प्रिन, आइबुप्रोफेन जैसी दवाएं बिलकुल भी न लें। पर्याप्त हाइड्रेशन के लिए तरल पदार्थ लें। डाक्टर को जरूर दिखाएं और उसके परामर्श से ही दवाएं लें।

इनका कहना है

राजधानी के अस्पतालों में जो भी मरीज भर्ती हैं, उनका एलाइजा टेस्ट के बाद ही डेंगू की पुष्टि होती है। भोपाल कलेक्टर की भी एलाइजा जांच के बाद ही पुष्टि की गई थी। जहां भी हमें डेंगू संदिग्ध मिल रहे हैं। वहां प्रोटोकाल का पालन किया जा रहा है।

– अखिलेश दुबे, जिला मलेरिया अधिकारी

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