वट पूर्णिमा पर पूजा के समय सुनें ये व्रत कथा, जीवन में हर संकट से मिलेगी मुक्ति!
हिन्दू धर्म में वट पूर्णिमा का व्रत हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को किया जाता है. इस व्रत को केवल महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का कामना करती हैं. पश्चिम भारत में यह व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन रखा जाता है. और उत्तरी भारत में ज्येष्ठ अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाता है. इस विशेष दिन पर वट वृक्ष के साथ-साथ बेल के पेड़ की पूजा करना भी शुभ माना जाता है. मान्यता है कि वट वृक्ष में त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है, इसलिए इसकी पूजा की जाए, तो तीनों देवों की एक साथ कृपा बरसती है.
पंचांग के मुताबिक, इस बार पूर्णिमा तिथि 21 जून दिन शुक्रवार को सुबह 7:32 बजे शुरू होगी और 22 जून दिन शनिवार को सुबह 6:38 बजे समाप्त होगी. इस तरह वट पूर्णिमा का व्रत 21 जून को ही रखा जाएगा.
ऐसे करें पूजा
- वट पूर्णिमा व्रत के दिन सबसे पहले सुबह उठकर सुहागिन महिलाएं व्रत का संकल्प लें.
- इस व्रत करने का पूरा विधान करवा चौथ व्रत की ही तरह किया जाता है.
- महिलाएं व्रत संकल्प करके शुद्ध होकर नए वस्त्र धारण करें और श्रृंगार करें.
- सुहाग की वस्तुएं भी पूजा की थाली में सजाएं और अपने घर के पास के किसी बरगद के पेड़ की पूजा करें.
- सबसे पहले बरगद के पेड़ से प्रार्थना करें कि वह उनकी पूजा स्वीकार करें.
- बरगद के पेड़ के आस-पास सफाई करके उसमें पानी अर्पित करें.
- भगवान गणेश का ध्यान करके पूजा आरंभ करने की स्वीकृति मांगें.
- माता पार्वती और पिता शिव जी का ध्यान करें और उनकी पूजा करें.
- सावित्री और सत्यवान की मूर्ति बनाएं या उनके चित्र को फूल माला से सजाएं.
- बरगद के पेड़ की परिक्रमा करें और सुहाग की वस्तुएं सावित्री को अर्पण करें.
- बरगद के पेड़ को भी कुमकुम, हल्दी के पानी से सींचें.
- पूजा के दौरान बरगद के पेड़ पर रोली और लाल सूती धागा लपेटे. लाल रंग सुहाग का प्रतीक है.
- बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर वट सावित्री पूर्णिमा व्रत की कथा सुनें.
- अपने बड़ों का आशीर्वाद लें और पति के पैर छूकर भी आशीर्वाद लें.
- व्रत के दिन जरूरतमंदों को किसी भी चीज का दान करें. इससे पूजा का पूर्ण फल मिलता है.
वट पूर्णिमा पर सुनें ये व्रत कथा
वट पूर्णिमा व्रत के दिन सावित्री और उनके पति सत्यवान को याद करने का एक अनोखा पर्व है. पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री राजा अश्वपति की पुत्री थीं और वे बेहद सुंदर और चरित्रवान थीं. बड़े जतन से सावित्री का विवाह सत्यवान नामक युवक से हुआ था. सत्यवान बेहद कर्तव्यनिष्ठ और भगवान के सच्चे भक्त थे. एक दिन नारदजी ने सावित्री को बताया कि सत्यवान की आयु कम है. तब सत्यवान की आयु के लिए सावित्री ने घोर तपस्या की, लेकिन निर्धारित तिथि के अनुसार, जब यमराज सत्यवान के प्राण हरने के लिए आए, तो सावित्री ने पतित्व के बल पर यमराज को रोक लिया. तब यमराज ने सावित्री से वरदान मांगने को कहा था.
सावित्री ने अलग-अलग तरह के 3 वरदान मांगे थे, लेकिन अंत में सावित्री ने एक पुत्र का वरदान मांग लिया था और बिना सोचे यमराज ने यह वरदान सावित्री को दे दिया था, लेकिन पति के बिना पुत्र का जन्म संभव नहीं है. इसलिए यमराज को अपने वचन निभाने के लिए सावित्री के पति सत्यवान के प्राण वापस लौटाने पड़े थे. वट सावित्री व्रत के दिन महिलाएं सावित्री की यह कथा सुनकर अपने व्रत को पूरा करती हैं और विश्वास करती हैं कि उनके पति की भी असमय मृत्यु से रक्षा होगी और उनका परिवार बरगद की तरह हरा-भरा रहेगा.
वट पूर्णिमा व्रत का महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री ने अपनी तपस्या और सतित्व की शक्ति से मृत्यु के देवता यम को अपने पति सत्यवान को जीवन वापस देने के लिए मजबूर किया था, इसलिए विवाहित महिलाएं अपने पतियों की सुरक्षा और लंबी उम्र के लिए वट सावित्री व्रत रखती हैं. इस व्रत को करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है. साथ ही पति के साथ रिश्ते अच्छे रहते हैं और दाम्पत्य जीवन में मधुरता आती है. इसके अलावा घर में भी सुख-समृद्धि का वास होता है.
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