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हरिशंकर तिवारी पर फिर गरमाई सियासत, बुलडोजर एक्शन को क्यों ब्राह्मण स्वाभिमान से जोड़ा जा रहा

पूर्वांचल की सियासत के कभी बेताज बादशाह रहे पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी को लेकर फिर एक बार सियासत गर्मा गई है. हरिशंकर तिवारी की जयंती पर 5 अगस्त को उनकी प्रतिमा लगाने की तैयारी थी. प्रतिमा लगाने के लिए पैतृक गांव टांडा में बनाए चबूतरे को प्रशासन ने बुधवार को बुलडोजर से ढहवा दिया. योगी सरकार के इस एक्शन को हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी ने ब्राह्मण स्वाभिमान से जोड़ा तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी समर्थन में उतर गए हैं. वहीं, बीजेपी का कहना है कि तिवारी परिवार अपनी खत्म होती सियासत को बचाने के लिए ओछी राजनीति पर उतर गया है.

साल 1985 से लेकर 2007 तक विधायक और अलग-अलग सरकारों में मंत्री रहे हरिशंकर तिवारी की प्रतिमा लगाने का फैसला टांडा ग्राम पंचायत ने लिया था. हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय तिवारी ने कहा कि प्रतिमा अनावरण के लिए बनाए गए चबुतरे का निर्णय ग्राम पंचायत और ग्राम प्रबंध समिति के द्वारा लिया गया था. इसके लिए उप जिलाधिकारी से स्वीकृति लेने का प्रस्ताव भेजा था, जिसकी तैयारी भी चल रही थी. ऐसे में अचानक 31 जुलाई को प्रशासन ने प्रतिमा को ढहवा दिया है. गोरखपुर प्रशासन का कहना है कि ग्राम सभा की जमीन पर बिना अनुमति के चबुतरे का निर्माण किया गया था, जिसे लेकर गांव के राजावशिष्ट त्रिपाठी ने प्रशासन से सरकारी भूमि पर बिना शासन के आदेश के प्रतिमा लगाने और ग्राम सभा के मुख्य द्वार का नाम बदले जाने की शिकायत की थी.

हरिशंकर तिवारी की प्रतिमा पर सियासत तेज

हरिशंकर तिवारी की प्रतिमा के लिए बनाए गए चबुतरे को प्रशासन द्वारा ढहाए जाने के बाद अब सियासत तेज हो गई है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि अब तक बीजेपी का बुलडोज़र दुकान-मकान पर चलता था, अब दिवंगतों के मान-सम्मान पर भी चलने लगा है. चिल्लूपार के सात बार विधायक रहे यूपी के पूर्व कैबिनेट मंत्री हरिशंकर तिवारी जी की जयंती पर उनकी प्रतिमा के प्रस्तावित स्थापना स्थल को भाजपा सरकार द्वारा तुड़वा देना, बेहद आपत्तिजनक कृत्य है. इसके साथ ही उन्होंने मांग की कि प्रतिमा स्थापना स्थल का तत्काल पुनर्निर्माण हो, जिससे जयंती दिवस 5 अगस्त को प्रतिमा की ससम्मान स्थापना हो सके.

बेटे विनय ने योगी सरकार पर किया हमला

वहीं, हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय तिवारी ने सोशल मीडिया पर लंबा पोस्ट लिखकर योगी सरकार को निशाने पर लिया. उन्होंने कहा कि यह प्रशासन की गुंडाई, सत्ता अंहकार और व्यक्तिगत दुश्मनी के तहत किया गया है. विनय शंकर तिवारी ने कहा कि यह कार्रवाई ब्राह्मण स्वाभिमान को चुनौती और समूची इनसानियत की हत्या है. यह निर्णय समय पर चिल्लूपार विधान सभा के लोग तो करेंगे ही देश और प्रदेश के निवासियों को भी करना है. हरिशंकर तिवारी की मूर्ती लगाने का निर्णय उनके पुत्र का नहीं बल्कि गांव और समाज के लोगों का था.

“इसका जवाब दिया जाएगा”

विनय तिवारी ने कहा कि हरिशंकर तिवारी प्रदेश की अलग-अलग सरकारों में मंत्री रहे और उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ उनके संबंधों का जिक्र करते हुए कहा कि जो-जो ब्राह्मण अस्मिता के पर्याय रहे हों, उनके मरने के बाद वर्तमान के निरंकुश शासनाधीष द्वारा लगातार उन्हें अपमानित किया जा रहा हो तो, हमें क्या करना चाहिए. ऐसे में सरकार की इस कार्रवाई को सहन नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा कि इसका जवाब दिया जाएगा. इुसके बाद सपा प्रमुख अखिलेश ने भी ट्वीट करके बीजेपी सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है.

“ओछी राजनीति कर रहे हैं”

चिल्लूपार सीट से बीजेपी विधायक राजेश त्रिपाठी ने कहा कि ये ब्राह्मण स्वाभिमान का मामला नहीं है बल्कि उनके पट्टीदार का मामला है. विनय शंकर तिवारी अपनी खत्म होती सियासत के चलते अपने पिता की प्रतिमा का सहारा लेकर राजनीति कर रहे हैं. उनका कहना है कि प्रशासन की कार्रवाई को सरकार से जोड़कर विनय शंकर तिवारी ओछी राजनीति कर रहे हैं.

हरिशंकर तिवारी ब्राह्मणों के नेता

पूर्वांचल में हरिशंकर तिवारी को ब्राह्मणों का कद्दावर नेता माना जाता है. हरिशंकर तिवारी और सीएम योगी आदित्यनाथ दोनों ही गोरखपुर की राजनीति की धुरी रहे. एक जहां राजनीति के बाहुबल के दौर में परवान चढ़ा तो दूसरा हिंदुत्व की विचारधारा के सहारे सीएम की कुर्सी तक पहुंचा, लेकिन दोनों कभी भी राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में साथ नहीं रहे.

पूर्वी उत्तर प्रदेश में जातीय गोलबंदी की राजनीति में योगी जहां उस गोरक्ष पीठ का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे दिग्विजयनाथ के समय से ठाकुरों की पीठ कहा जाता है, जबकि दूसरी तरफ हरिशंकर तिवारी ने ब्राह्मणों को लामबंद किया. सीएम योगी और हरिशंकर तिवारी की सियासी अदावत जगजाहिर रही है. इसीलिए विनय शंकर तिवारी ने हरिशंकर तिवारी की प्रतिमा को प्रशासन के ढहाए जनाते के बाद इस मामले को ब्राह्मण समाज के स्वाभिमान से जोड़ने की कोशिश की है और अखिलेश यादव के इस मामले में कूदने के बाद सियासी रंग चढ़ना लाजमी है.

अखिलेश की ब्राह्मण वोटों को साधने की मंशा

अखिलेश यादव की नजर अब ब्राह्मण वोटों पर है, जिसका संकेत उन्होंने माता प्रसाद पांडेय को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाकर दे दिया है. अब हरिशंकर तिवारी की प्रतिमा लगाए जाने वाले चबुतरे को ढहाए जाने के बाद जिस तरह से ट्वीट कर योगी सरकार के बुलडोजर एक्शन पर सवाल उठाया है, उसे ब्राह्मण वोटों को साधने की मंशा से देखा जा रहा है. हरिशंकर तिवारी और माता प्रसाद पांडेय दोनों ही पूर्वांचल और गोरखपुर मंडल से आते हैं. यह वही इलाका है, जिसे मुख्यमंत्री योगी का गढ़ कहा जाता है.

गोरखपुर में सपा की रणनीति

लोकसभा चुनाव में भले ही सपा 37 सीटों के साथ यूपी की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी हो, लेकिन सीएम योगी के प्रभाव वाले गोरखपुर मंडल में अपना प्रभाव नहीं दिखा सकी है. गोरखुपर मंडल की महज एक सीट ही सपा जीत सकी है और 2022 के विधानसभा चुनाव में भी उसे महज 6 सीटें ही मिली थी. ऐसे में अखिलेश की नजर गोरखपुर इलाके में अपनी सियासी जड़े जमाने की है, जिसके लिए ठाकुर बनाम ब्राह्मण की सियासी बिसात बिछाने की कवायद में है. इसीलिए अखिलेश यादव ने अपने तमाम दिग्गज नेताओं और पीडीए फॉर्मूले को दरकिनार करते हुए माता प्रसाद पांडेय पर दांव खेला और अब हरिशंकर तिवारी के बहाने अपनी ब्राह्मण सियासत को धार देने की रणनीति बनाई है.

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