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धारा 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में पहला विधानसभा चुनाव, बदले हालात में कितने बदले समीकरण?

चुनाव आयोग आज शुक्रवार को दो राज्यों हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान करने जा रहा है. साल 2019 में धारा 370 के खत्म होने के बाद जम्मू-कश्मीर को स्पेशल राज्य से केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया और बदले हालात में यहां पर पहली बार विधानसभा चुनाव कराए जा रहे हैं. हालांकि अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव के दौरान यहां पर भी वोटिंग कराई गई थी, और कई क्षेत्रों में रिकॉर्डतोड़ वोटिंग हुई थी.

केंद्र सरकार की ओर से विशेष राज्य का दर्जा देने वाले धारा 370 को खत्म करते हुए जम्मू-कश्मीर का विभाजन कर दिया गया. इसे 2 हिस्सों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया गया. राज्य का नक्शा बदल दिए जाने के बाद से ही यहां पर विधानसभा चुनाव कराए जाने की मांग राजनीतिक हलकों में की जाती रही है. मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और उसने निर्देश दिया कि 30 सितंबर 2024 से पहले यहां पर विधानसभा चुनाव संपन्न करा लिए जाए.

विधानसभा चुनाव से पहले जम्मू-कश्मीर में इस साल अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव के दौरान 5 सीटों पर वोटिंग कराई गई जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया. यहां पर कुल 58.46 फीसदी वोट पड़े, जो 2019 के चुनाव की तुलना में 18.1 फीसदी ज्यादा रहा. साल 2014 में 49.72 फीसदी वोट पड़े थे. जबकि 2019 में 44.97% फीसदी वोट पड़े थे.

10 साल पहले हुआ था विधानसभा चुनाव

जम्मू-कश्मीर में करीब 10 साल बाद विधानसभा चुनाव कराए जा रहे हैं. यहां पर आखिरी बार चुनाव 2014 में नवंबर-दिसंबर में कराए गए थे. तब के चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला था. 5 चरणों में कराए गए चुनाव में 87 सीटों पर वोटिंग कराई गई. मुफ्ती मुहम्मद सईद की अगुवाई वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को 28 सीटों पर जीत मिली. जबकि भारतीय जनता पार्टी के खाते में 25 सीटें आईं. फारूख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस महज 15 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी. कांग्रेस ने 12 सीटों पर कब्जा जमाया था.

सरकार बनाने के लिए किसी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला. लेकिन लंबी बातचीत के बाद मुफ्ती मुहम्मद सईद की अगुवाई वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बीच गठबंधन हो गया. राज्य में मार्च 2015 में गठबंधन की सरकार अस्तित्व में आ गई. गठबंधन के जरिए बीजेपी जम्मू-कश्मीर में पहली बार सत्ता में साझीदार बनने में कामयाब रही. मुफ्ती सरकार में उसे उपमुख्यमंत्री पद समेत कई अहम विभाग भी मिले. हालांकि यह सरकार ज्यादा दिन नहीं चल सकी क्योंकिलंबी बीमारी के बाद मुफ्ती मुहम्मद सईद का अगले साल जनवरी में निधन हो गया. फिर राज्य में राज्यपाल शासन लगा दिया गया.

महबूबा सरकार भी ज्यादा नहीं चली

इसके बाद बीजेपी और पीडीपी के बीच फिर से बातचीत का दौर चला. मुफ्ती मुहम्मद सईद की बेटी महबूबा मुफ्ती सईद राज्य की नई मुख्यमंत्री बनीं. इस बार भी पीडीपी ने 4 अप्रैल 2016 को बीजेपी के साथ अपनी मिली-जुली सरकार बनाई. लेकिन यह सरकार भी ज्यादा समय तक नहीं चल सकी.

जून 2018 में बीजेपी ने पीडीपी सरकार से समर्थन वापस ले लिया और महबूबा की सरकार का पतन हो गया. नवंबर 2018 में तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने राज्य विधानसभा को भंग कर दिया. हालांकि विपक्षी दलों की ओर से आरोप लगाया गया कि वे सरकार बनाने की दिशा में बातचीत कर रहे थे, लेकिन इसे भंग कर दिया गया. 20 दिसंबर 2018 में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.

370 खत्म, फिर J&K का परिसीमन

साल 2019 में दूसरी बार सत्ता में लौटी बीजेपी की नरेंद्र मोदी सरकार ने जल्द ही जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर दिया. राज्य की सीमा में बदलाव के बाद राजनीतिक स्तर पर काफी कुछ बदल गया. फिर जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में विधानसभा सीटें बढ़ाने के बाद यहां पर परिसीमन कराना जरूरी हो गया था. पहले यहां 111 सीटें जिसमें 46 कश्मीर क्षेत्र में, 37 जम्मू क्षेत्र में और चार लद्दाख में हुआ करती थीं. जबकि 24 सीटें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में थीं.

परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर में सीटों में बदलाव

लद्दाख को अलग से केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या घट गईं और महज 107 सीटें ही रह गईं. पुनर्गठन अधिनियम के तहत सीटों की संख्या बढ़ाकर 114 कर दिया गया. इनमें जम्मू-कश्मीर में 90 सीटें तो 24 सीटें पीओके के लिए तय की गईं. सीटों के निर्धारण के लिए सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अगुवाई वाले परिसीमन आयोग का गठन 6 मार्च 2020 को किया गया.

परिसीमन के बाद J&K में इतनी बढ़ी सीटें

परिसीमन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में केंद्र शासित प्रदेश में सात सीटें बढ़ाने की सिफारिश की. इसमें जम्मू क्षेत्र में 6 सीटें बढ़ाते हुए 37 से 43 जबकि कश्मीर घाटी में एक सीट का इजाफा करते हुए 46 से 47 सीटें कर दी गईं. 16 सीटों को रिजर्व कैटेगरी में रखा गया. यहां पर अनुसूचित जनजाति के लिए 9 सीटें तो अनुसूचित जाति के लिए 7 सीटें रिजर्व की गईं.

यहां पहली बार 9 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व की गई. एसटी के लिए रिजर्व होने वाला सीटें हैं राजौरी, थाना मंडी, बुधल, सुरनकोटे, पुंछ हवेली, मेंधर, गुरेज, कोकरनाग और गुलबर्ग शामिल हैं. हालांकि जम्मू-कश्मीर जब स्पेशल राज्य हुआ करता था तब यहां पर अनुसूचित जनजाति के लिए सीटें रिजर्व नहीं हुआ करती थी. यहां तक की प्रवासी गुर्जर और बकरवाल के लिए सीटें आरक्षित नहीं थी.

जम्मू क्षेत्र की स्थिति मजबूत

लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दलों ने कांग्रेस की अगुवाई में INDIA (Indian National Developmental Inclusive Alliance) नाम से गठबंधन बनाया. INDIA को चुनाव में खासा फायदा भी मिला. जम्मू-कश्मीर क्षेत्र की बात करें तो यहां पर INDIA में कांग्रेस के अलावा जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, जम्मू-कश्मीर अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस शामिल हैं. जबकि भारतीय जनता पार्टी यहां पर अकेले चुनाव लड़ती दिख रही है, उसका किसी के साथ गठबंधन नहीं हुआ है. इसी तरह जम्मू-कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी भी यहां के प्रमुख दलों में शामिल है.

हालांकि परिसीमन के बाद दावा किया जा रहा है कि चुनाव में जम्मू क्षेत्र की स्थिति मजबूत हो गई है. यहां पर 6 सीटों का इजाफा किया गया है जबकि कश्मीर में महज एक सीट बढ़ाई गई है. इस तरह से जम्मू क्षेत्र में 44 फीसदी आबादी 48 सीटों पर अपना निर्णय देगी जबकि कश्मीर क्षेत्र में 56 फीसदी लोग शेष 52 फीसदी सीटों का भाग्य तय करेंगे.

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