ब्रेकिंग
अडानी से लेकर मणिपुर तक… कांग्रेस ने बताया किन मुद्दों को संसद सत्र में उठाएगी जंगल से मिला लड़के का शव…रेत दिया गया था गला, पुलिस ने दो दोस्तों से की पूछताछ, एक ने लगा ली फांसी महाराष्ट्र में प्रचंड जीत के बाद सरकार बनाने की तैयारी तेज, BJP-शिवसेना-NCP की अलग-अलग बैठकें पत्थर तो चलेंगे… संभल बवाल पर बोले रामगोपाल यादव, अखिलेश ने कहा- सरकार ने जानबूझकर कराया पाकिस्तान से जंग में तीन बंकरों को कर दिया था नेस्तनाबूद , कहानी गाजीपुर के राम उग्रह पांडेय की झारखंड: जिस पार्टी का जीता सिर्फ एक विधायक, उसने भी बोला दे दूंगा इस्तीफा गाजियाबाद: डासना मंदिर के बाहर फोर्स तैनात, यति नरसिंहानंद को दिल्ली जाने से रोका, ये है वजह गूगल मैप ने दिया ‘धोखा’… दिखाया गलत रास्ता, पुल से नदी में गिरी कार, 3 की मौत 30 लाख की नौकरी छोड़ी, UPSC क्रैक कर बने IPS, जानें कौन हैं संभल के SP कृष्ण कुमार बिश्नोई? संभल: मस्जिद के सर्वे को लेकर 1 घंटे तक तांडव… फूंक दीं 7 गाड़ियां, 3 की मौत; बवाल की कहानी

जिंदगी जिंदादिली का नाम…ब्लड कैंसर से पीड़ित महिला ने नार्मल डिलीवरी में दिया जुड़वा बच्चों को जन्म

इंदौर : जानलेवा ब्लड कैंसर से पीड़ित गर्भवती महिला ने इंदौर शहर के सबसे बड़े गायनिक एमटीएच हॉस्पिटल में बिना ऑपरेशन के जुड़वां बच्चों को दिया है। जन्म के बाद जहां नवजात बालिका और बालक दोनों स्वस्थ हैं तो वहीं इनकी मां सहित परिजनों की खुशी का ठिकाना नहीं है।

दरअसल खरगोन के रहने वाले मजदूर परिवार की बहू चिंकी राठौर जानलेवा ब्लड कैंसर से पीड़ित है। इस बात की जानकारी चिंकी राठौर के ससुरालवालों ने उससे छिपाई और इस दौरान वो गर्भवती हुई। हालांकि चिंकी को भी अपने शरीर में पल रही जानलेवा बीमारी का अहसास हो चुका था। बावजूद इसके दोनों एक दूसरे से बातें छुपाते रहे। प्रसव पीढ़ा होने के बाद जब चिंकी को खरगोन से इंदौर के एमटीएच अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती किया गया तो डाक्टरों की टीम ने इस जानलेवा बीमारी के बाद भी महिला का सफल प्रसव कराया। बिना ऑपरेशन के महिला ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया है।

मेडिकल कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर अक्षय लाहौटी ने बताया कि 22 वर्षीय महिला को जब परिजन पहली बार इलाज कराने के लिए लाया गया था तब उसे लगभग 25 सप्ताह का गर्भ था वह क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया नाम के ब्लड कैंसर से पीड़ित है। सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल के डॉक्टर्स के सामने सबसे बड़ा चैलेंज यह था कि गर्भवती होने के चलते गर्भवती महिला के इलाज में न ज्यादा गर्म दवाइयां दे सकते थे न ही कीमोथैरेपी या रेडिएशन से संबंधित किसी अन्यथेरेपी का इस्तेमाल कर सकते थे।

आखिरकार सीनियर सर्जन डॉक्टर सुमित शुक्ला और डॉक्टर अक्षय लाहौटी ने निर्णय लिया कि गर्भवती पीड़िता को हॉस्पिटल में बिना भर्ती किए उसकी डिलीवरी तक न सिर्फ इलाज करना है बल्कि निगरानी रखते हुए हर दिन की मेडिकल रिपोर्ट पर सुबह शाम नजर रखना है। यह निर्णय लेने के बाद क्लीनिकल हेमेटोलॉजी की टीम ने इलाज शुरू कर दिया। तीन महीने तक चले सफल इलाज का सकारात्मक परिणाम सामने आया। सीनियर गायनेकोलजिस्ट डॉक्टर सुमित्रा यादव की निगरानी में गर्भवती पीड़िता ने बिना ऑपरेशन के प्राकृतिक तरीके से स्वस्थ जुड़वां बालक- बालिका को जन्म दिया।

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.