हरियाणा: इतनी बड़ी एंटी इनकम्बेंसी को कैसे मैनेज कर ले गए भाजपा और आरएसएस?
4 जून 2024 को जब लोकसभा के नतीजे आए तो हरियाणा में बीजेपी की सरकार के खिलाफ भयंकर एंटी इनकम्बेंसी देखने को मिली. लोकसभा सीटों के आंकड़ों में जहां बीजेपी हाफ हो गई, वहीं विधानसभा वाइज भी पार्टी का परफॉर्मेंस फिसड्डी ही रहा. हालांकि, इस नतीजे के 130 दिन बाद आए विधानसभा चुनाव के परिणाम ने सबको चौंका दिया है.
हरियाणा चुनाव 2024 में बीजेपी 2019 से भी बड़ी जीत दर्ज करती दिख रही है. चुनाव आयोग के मुताबिक, बीजेपी को 48 सीटों पर जीत मिल सकती है. 90 सीटों वाली हरियाणा विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 46 विधायकों की जरूरत पड़ती है.
130 दिन में ही हुए इस भारी उलटफेर के बीच सवाल उठ रहा है कि इतनी बड़ी एंटी इनकम्बेंसी को बीजेपी और आरएसएस ने कैसे मैनेज कर लिया?
4 महीने पहले ग्राउंड में उतरे RSS के पदाधिकारी
2023 में मध्य प्रदेश चुनाव के दौरान जिस तरह से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारी फील्ड में उतरे थे, उसी तरह हरियाणा में संघ के पदाधिकारियों ने मोर्चा संभाला. जुलाई के मध्य में संघ के पदाधिकारियों ने सीधे तौर पर हरियाणा की कमान संभाली.
संघ के फीडबैक के आधार पर ही बीजेपी ने रणनीति तैयार की. कई मौके ऐसे आए, जब बीजेपी के संगठन और सरकार के बड़े लोगों को फैसले की जानकारी भी नहीं मिल पाती थी.
जैसे- नायब सिंह सैनी कहां से लड़ेंगे और गोपाल कांडा के खिलाफ उम्मीदवार नामांकन वापस लेंगे या नहीं? कहा जाता है कि संघ के पदाधिकारियों ने उन इलाकों पर खास फोकस रखा, जो सीधे तौर पर भूपिंदर सिंह हुड्डा परिवार का गढ़ नहीं था.
जाट बनाम गैर-जाट की रणनीति तैयार किया
आरएसएस से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, पहले की तरह ही संगठन ने हरियाणा में जाट बनाम गैर-जाट की रणनीति पर फोकस किया. संघ के पदाधिकारियों ने गांव-गांव घूम कर गैट-जाट वोटरों को साधते रहे. हरियाणा की राजनीति में 2014 से ही जाट बनाम गैर-जाट वोटों का ट्रेंड चल रहा है.
कहा जाता है कि हरियाणा के 36 में से जाट एक तरफ हैं, जबकि 35 बिरादरी एक तरफ. इन 35 बिरादरी में दलित अहीर, गुर्जर और ब्राह्मण जैसे बड़ी आबादी वाली जातियां भी है.
हरियाणा के परिणाम पर भी इसका असर देखने को मिला. अहीरवाल और गुर्जर लैंड में एंटी इनकम्बेंसी के बावजूद बीजेपी ने बढ़िया प्रदर्शन किया है.
बीजेपी ने चुनाव से पहले ब्राह्मणों को साधने के लिए मोहन लाल बड़ौली को प्रदेश अध्यक्ष घोषित किया. यह फैसला भी पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हुआ.
खट्टर को साइड कर कोर वोटर्स को जोड़ा
हरियाणा में बीजेपी के कोर वोटरों में सबसे ज्यादा नाराजगी मनोहर लाल खट्टर को लेकर ही थी. कार्यकर्ताओं का कहना था कि खट्टर किसी की सुनते नहीं हैं. बीजेपी ने चुनाव से पहले सीएम कुर्सी से खट्टर को तो हटा दिया, लेकिन लोकसभा के टिकट बंटवारे में खट्टर का दबदबा कायम रहा.
विधानसभा चुनाव में आरएसएस ने खट्टर के दबदबे को पूरी तरह से खत्म कर दिया. खट्टर सिर्फ एक बार कुरुक्षेत्र की रैली में प्रधानमंत्री मोदी के साथ मंच पर दिखे. इसके बाद बड़े नेताओं ने खट्टर के साथ कोई रैली नहीं की.
टिकट वितरण में भी खट्टर के करीबियों को तरजीह नहीं दी गई.
कांग्रेस की गुटबाजी वाली सीटों पर फोकस
कांग्रेस हरियाणा चुनाव में 3 धड़ो में बंट गई थी. एक धड़ा भूपिंदर सिंह हुड्डा और उदयभान का था. दूसरा धड़ा कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला का और तीसरा धड़ा कैप्टन अजय यादव का, जिसमें कुछ अहीर और गुर्जर नेता शामिल थे.
कांग्रेस के टिकट बंटवारे में हुड्डा गुट ने बाजी मार ली, जिसके बाद से पार्टी के भीतर गतिरोध शुरू हो गया. आरएसएस ने इस मौके को तुरंत लपका. संघ ने उन सीटों पर विशेष फोकस किया, जहां कांग्रेस गुटबाजी की वजह से फंसी हुई थी.
इनमें कालका, जिंद, नरवाना और असंध जैसी सीटें शामिल हैं. इन सीटों पर बीजेपी को बेहतरीन नतीजे मिले हैं.
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.