झारखंड में बदला परिवारवाद का ट्रेंड, बेटी-बेटा नहीं, यहां बहुएं संभाल रहीं सियासी विरासत
झारखंड के चुनाव में इस बार नेताओं के बेटे, बेटियां और पत्नियों से ज्यादा बहुओं का सियासी दबदबा है. राज्य की करीब आधा दर्जन सीटों पर नेताओं की बहुएं सियासी विरासत संभालने उतरी हैं. इनमें शिबू सोरेन की बहू सीता और कल्पना, रघुबर दास की बहू पूर्णिमा का नाम प्रमुख है.
इनमें कुछ नेताओं की बहुएं पहले ही सियासी तौर पर स्थापित हो चुकी हैं तो कुछ पहली बार राजनीति में उतर रही हैं. इस स्टोरी में इन्हीं की कहानी को डिटेल में जानते हैं..
शिबू सोरेन की दो बहू सियासी मैदान में
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की 2 बहुएं सियासी मैदान में हैं. गिरिडिह की गांडेय सीट से शिबू के बेटे हेमंत की पत्नी कल्पना चुनाव लड़ रही हैं. कल्पना 2024 में इस सीट से उपचुनाव जीत चुकी हैं. हेमंत के जेल जाने के बाद कल्पना ने राजनीति में एंट्री ली.
एमबीए तक की पढ़ाई करने वाली कल्पना की शादी 7 फरवरी 2006 को हेमंत सोरेन से हुई थी. दोनों के दो बच्चे हैं. कल्पना सोरेन राजनीति में आने से पहले एजुकेशन के क्षेत्र में काम कर रही थीं.
शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता भी राजनीति में हैं. सीता अपने पति दुर्गा सोरेन के निधन के बाद राजनीति में आईं. वे जामा सीट से विधायक भी रह चुकी हैं. हालांकि, 2024 में लोकसभा से पहले उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया.
बीजेपी ने इस बार सीता सोरेन को जामताड़ा से मैदान में उतारा है. जामताड़ा सीट बीजेपी के लिए सियासी तौर पर आसान नहीं है. यहां आदिवासी और मुस्लिम गठजोड़ काफी मजबूत है.
राज्यपाल रघुबर दास ने बहू पूर्णिमा को उतारा
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में ओडिशा के राज्यपाल रघुबर दास ने जमशेदपूर पूर्वी सीट से अपनी बहू पूर्णिमा दास को मैदान में उतारा है. 2019 में रघुबर दास इस सीट से चुनाव हार गए थे. इसके बाद से ही उनकी झारखंड की सियासत से विदाई हो गई.
पूर्णिमा की शादी 2019 में रघुबर के इकलौते बेटे ललित दास से हुई है. ललित हाल ही में तब सुर्खियों में आए थे, जब ओडिशा राजभवन के एक कर्मचारी ने उन पर मारपीट का आरोप लगाया था. यह मामला विधानसभा में भी उछला था.
छत्तीसगढ़ की मूल निवासी पूर्णिमा ने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की है. पूर्णिमा पर जमशेदपुर में रघुबर दास की सियासी विरासत को लौटाने की जिम्मेदारी है.
निर्मल महतो की बहू भी इचागढ़ से मैदान में
झारखंड आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले शहीद निर्मल महतो की बहू सविता महतो भी सियासी मैदान में हैं. सविता झारखंड मुक्ति मोर्चा के सिंबल पर सरायकेला की इचागढ़ सीट से लड़ रही हैं. 2019 में सविता इस सीट से जीत भी चुकी हैं.
2014 में पति सुधीर महतो के निधन के बाद सविता राजनीति में आईं. इचागढ़ सीट पर सविता का मुकाबला आजसू उम्मीदवार से है. सबिता महतो ने नौंवी तक की पढ़ाई की हुई है.
सबिता के नामाकंन सभा में हेमंत सोरेन ने कहा कि इनके अंदर शहीदों का खून दौड़ रहा है. बीजेपी के लोग इनसे क्या मुकाबला कर सकेंगे?
अवध बिहारी की बहू दीपिका पांडे फिर मैदान में
संयुक्त बिहार-झारखंड के कद्दावर नेता रहे अवध बिहारी सिंह की बहू दीपिका पांडे फिर से मैदान में हैं. दीपिका महगामा सीट से 2019 में जीती थी, जिसके बाद उन्हें हेमंत सोरेन सरकार में मंत्री बनाया गया था.
दीपिका के पति प्रोफेशनल सेक्टर में काम करते हैं. दीपिका राजनीति में आने से पहले पत्रकारिता क्षेत्र में सक्रिय थीं. यूथ कांग्रेस के जरिए राजनीति में आने वाली दीपिका को 2014 में गोड्डा का जिलाध्यक्ष बनाया गया था.
दीपिका का इस बार मुकाबला पुराने प्रतिद्वंद्वी अशोक भगत से है.
खुद नहीं लड़ पाए भोगता तो बहू को मैदान में उतारा
सत्यानंद भोगता हेमंत सोरेन सरकार में मंत्री हैं. 2019 में वे चतरा (सुरक्षित) सीट से जीतकर विधायक बने थे. 2022 में उनकी जाति को केंद्र सरकार ने आदिवासी वर्ग में आरक्षित कर दिया. भोगता और उनके बेटे इस वजह से चतरा सीट से चुनाव लड़ने से वंचित रह गए, लेकिन भोगता ने सियासी हार नहीं मानी.
उन्होंने अपनी बहू रश्मि प्रकाश को यहां से मैदान में उतार दिया है. रश्मि की जो जाति है, वो दलित कैटेगरी के अधीन है और रश्मि इस वजह से चतरा सीट से चुनाव लड़ने योग्य हैं. रश्मि के पति मोहित स्थानीय कोर्ट में चपरासी के पद पर कार्यरत हैं.
रश्मि का मुकाबला चतरा सीट पर चिराग पासवान के उम्मीदवार जनार्दन पासवान से है. जनार्दन पहले भी सत्यानंद भोगता के सामने चुनाव लड़ चुके हैं.
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