बेटे को विरासत सौंपने में कमल नाथ विफल, दिग्विजय सिंह ने मजबूत किया किला
भोपाल। चार दशक से सियासी दोस्ती, एक-दूसरे की चिंता और हर परिस्थिति में साथ रहे हैं, लेकिन राजनीतिक विरासत सौंपने में एक सफल, तो दूसरा विफल। ये है मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सबसे पुरानी जोड़ी- कमल नाथ और दिग्विजय सिंह की, जो अब अपनी विरासत बेटों को सौंप रहे हैं।
इस कवायद में कमल नाथ कमजोर साबित हो रहे हैं, जबकि दिग्विजय सिंह ने जयवर्धन सिंह की स्थिति काफी मजबूत कर दी है। नकुल नाथ के हाथों से छिंदवाड़ा भी निकल चुका है, वहीं मध्य प्रदेश कांग्रेस की टीम में भी वह शामिल नहीं किए गए हैं, जबकि जयवर्धन विधायक होने के साथ अब विजयपुर विस सीट पर उपचुनाव में प्रभारी नियुक्त किए गए हैं। कमल नाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे हैं।
भारी पड़ी 2023 विधानसभा चुनाव की हार
- पिछले साल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की पराजय के बाद से चार दशक पुरानी जोड़ी के राजनीतिक भविष्य पर संकट गहराने लगे थे। बाद में प्रदेश कांग्रेस की कमान जीतू पटवारी को सौंपने के साथ नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार को बनाया गया।
- इसके बाद से कमल नाथ की नाराजगी की चर्चाएं भी सामने आईं थीं। फिर करीब आधा दर्जन विधायकों का समर्थन लेकर दिल्ली जा पहुंचे और मान लिया गया कि वे भाजपा में शामिल हो रहे हैं, लेकिन अंतिम क्षणों में वापस मप्र आ गए।
- इस घटनाक्रम ने उनकी तीन पीढ़ियों के साथ कांग्रेस के प्रति निष्ठा को गहरा धक्का दिया। कमल नाथ ने बेटे को लोकसभा चुनाव का टिकट दिलाने की गरज से कांग्रेस हाईकमान पर दबाव बनाने के लिए भाजपा के प्रति झुकाव के संकेत दिए थे, पर दांव उल्टा पड़ गया।
टीम जीतू से कमल नाथ से बना रखी दूरी
इसके बाद दूसरा बड़ा नुकसान लोस चुनाव में हुआ, जब उनके अभेद्य किले छिंदवाड़ा को भाजपा ने कब्जे में ले लिया और नाथ के बेटे नकुल नाथ हार गए। इधर, चुनावी हार का असर संगठन में घटते कद के रूप में दिखाई दे रहा है। टीम जीतू से नाथ ने दूरी बना ही रखी है, वहीं नकुल को इसमें स्थान नहीं दिया गया।
राजनीति की नैया को खेने में सफल हुए दिग्विजय सिंह
दूसरी तरफ देखें तो दिग्विजय सिंह भी पार्टी और गांधी परिवार के प्रति निरंतर निष्ठा रखने वाले वरिष्ठ नेता हैं, वर्ष 1993 में जब वह संयुक्त मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो सोनिया गांधी कांग्रेस में हाशिए पर थीं।
पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे, तब भी दिग्विजय ही एकमात्र नेता थे, जो गांधी परिवार का ध्यान रखते थे। तब से अब तक हर परिस्थिति में अपनी मौजूदगी साबित करते हुए राजनीतिक भविष्य की नैया को खेने में वह कामयाब हुए हैं। वह अपने बेटे जयवर्धन सिंह का राजनीतिक भविष्य सेट कर नाथ से आगे निकल गए।
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.