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यौन उत्पीड़न और शारीरिक चोटों से जुड़े मामलों में पीड़ित को मिले मुआवजा, SC का ट्रायल कोर्ट को निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने सभी ट्रायल कोर्ट को अहम निर्देश दिया है. कहा है कि यौन उत्पीड़न और शारीरिक चोटों से जुड़े मामलों में महिलाओं व नाबालिग बच्चों को पीड़ित को मुआवजा देने का आदेश दें. यह निर्देश सर्वोच्च अदालत ने सैबज नूर मोहम्मद शेख बनाम महाराष्ट्र सरकार मामले में दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने 4 नवंबर के अपने आदेश में यह निर्देश दिया है. आदेश की प्रति आज आई है.

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने सोमवार को आईपीसी और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पाक्सो अधिनियम) के विभिन्न प्रावधानों के तहत बलात्कार और हमले के लिए दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश पारित किया.

दोषी ठहराया जाएगा या बरी कर दिया जाएगा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन परिस्थितियों में हम निर्देश देते हैं कि एक सत्र न्यायालय, जो विशेष रूप से नाबालिग बच्चों और महिलाओं पर यौन उत्पीड़न आदि जैसी शारीरिक चोटों से संबंधित मामले का फैसला करता है. मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए पीड़ित को मुआवजा देने का आदेश देगा. रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों के आधार पर फैसला सुनाते हुए या तो आरोपी को दोषी ठहराया जाएगा या बरी कर दिया जाएगा.

बार एसोसिएशन को स्वैच्छिक कदम उठाने चाहिए

एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट से वकीलों को झटका लगा है. कोर्ट ने वकीलों के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. हालांकि, कोर्ट ने बुधवार को याचिकाकर्ता को बार काउंसिल ऑफ इंडिया के सामने अपना पक्ष रखने की अनुमति दी. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि सभी बार एसोसिएशन को इस मामले के समाधान के लिए स्वैच्छिक कदम उठाने चाहिए.

देश कहेगा कि केवल वकीलों के लिए ही क्यों?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा अन्य व्यवसायों से भी जुड़ा है. ऐसे में देश कहेगा कि केवल वकीलों के लिए ही क्यों? सीए, इंजीनियर, डॉक्टर और अन्य का क्या होगा? याचिकाकर्ता के वकील बलबीर सिंह ने दलील दी कि भारतीय चिकित्सा संघ के पास चिकित्सा पेशेवरों के मानसिक स्वास्थ्य के मामले पर ध्यान देने के लिए एक सिस्टम है.

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