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मकर संक्रांति को लेकर गया का तिलकुट बाजार हुआ गुलजार, अभी से खरीदारी करने में जुटे लोग

गयाः मकर संक्रांति को लेकर बिहार में गया का तिलकुट बाजार गुलजार हो गया है। विश्व प्रसिद्ध धार्मिक नगरी गयाजी में विशेष मिष्ठान के रूप में तिलकुट की एक अलग पहचान होती है। विदेशी प्रर्यटक भी तिलकुट का स्वाद चखने के लिए बेताब रहते है।

सोंधी महक से गुलजार हो जाता है शहर 
वैसे तो यहां सालों भर तिलकुट की ब्रिकी होती है, लेकिन सर्द मौसम आते ही इसकी मांग बढ़ जाती है। जनवरी माह में तिलकुट की मांग बढ़ते ही धम-धम की आवाज और सोंधी महक से शहर गुलजार हो जाता है। यह किसी फैक्ट्री या किसी अन्य मशीनों की आवाज नहीं होती है, बल्कि हाथ से तिलकुट कुटने की आवाज होती है। तिलकुट को गया का प्रमुख सांस्कृतिक मिष्ठान के रूप में जाना जाता है, लेकिन अपनी विशिष्टता के कारण राष्ट्रीय-अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाला तिलकुट सरकार की उपेक्षा एवं जिला उद्योग केन्द्र के असहयोगगात्मक रवैये के कारण अपेक्षा के अनुरूप फैलाव नहीं हो पा रहा है।

अभी से तिलकुट की खरीदारी कर रहे लोग 
कोरोना की तीसरी लहर एवं महंगाई के कारण तिलकुट व्यवसाय पर इसका प्रतिकूल असर पड़ रहा है। महंगाई के कारण लोग बहुत कम खरीदारी कर रहे हैं। आगामी 14 जनवरी को मकर संक्रांति का त्योहार है। इस दिन तिलकुट खाने का धार्मिक प्रावधान होता है। इसे लेकर गया शहर का तिलकुट बिक्री के लिए माने जाने वाला मुख्य बाजार रामना रोड एवं टिकारी रोड गुलजार हो चुका है। लोग अभी से ही तिलकुट की खरीदारी कर रहे है। जानकारी के अनुसार करीब डेढ़ सौ वर्ष पूर्व गया शहर के रमना रोड मुहल्ले में तिलकुट बनना शुरू हुआ था। तिलकुट के शुरूआत करने वाले लोगों के वंशज भी इसी मौसमी कुटीर उद्योग को आगे बढ़ा रहे है। अब तो शहर के रमना रोड, टिकारी रोड, कोयरीबारी, राजेन्द्र आश्रम, चांदचौरा, सरकारी बस स्टैड, स्टेशन रोड आदि में तिलकुट का निर्माण किया जा रहा हैं।

वैसे तो तिलकुट देश के कई हिस्सों में बनाया जाता है। लेकिन गया में बने तिलकुट की खास बात होती है, यहां चीनी की अपेक्षा तिल को ज्यादा मात्रा में मिलाया जाता है। जिस कारण यह शरीर के लिए भी फायदेमंद होता है। तिलकुट खाने से कब्जियत दूर होती है। इसे बनाने में कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। गुड़ या चिनी की चासनी बनाकर उसे कुट-कुट कर तिलकुट तैयार किया जाता था। फिर तिल को बड़े पात्रों से भुनकर चासनी के ठंढे टुकडों के साथ मिलाकर उसे कुट-कुट कर तैयार किया जाता था। यहां निर्मित तिलकुट का देश भर में कोई सानी नही है।

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