आतंकवाद की साझा परिभाषा पर संयुक्त राष्ट्र के रवैये को लेकर भारत ने चिंता जताई है। भारत ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद की एक साझा परिभाषा पर अभी तक सहमत नहीं हुआ है और ना ही इस वैश्विक संकट से निपटने एवं आतंकवादी नेटवर्क को खत्म करने के लिए कोई समन्वित नीति तैयार की गई है। भारत ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ एक व्यापक संधि करने की प्रक्रिया को टालते जा रहे हैं और असफल साबित हुए हैं।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन में द्वितीय सचिव दिनेश सेतिया ने सोमवार को संगठन के कार्य पर महासचिव की रिपोर्ट पर विचार-विमर्श के लिए आयोजित संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) की बैठक में कहा, ‘‘द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से देश और समाज जिस सबसे खतरनाक संकट से जूझ रहे हैं, उस आतंकवाद से गंभीरता से निपटने की हमारी अक्षमता उन लोगों के लिए संगठन की प्रासंगिकता पर सवाल उठाती है, जिनकी रक्षा करना UN के चार्टर के तहत उसकी जिम्मेदारी है।” उन्होंने कहा, ‘‘संयुक्त राष्ट्र अभी किसी साझा परिभाषा पर सहमत नहीं हो पाया है।वह आतंकवाद से निपटने और इसके नेटवर्क को समाप्त करने की समन्वित नीति बनाने में नाकाम रहा है। हम अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ एक व्यापक संधि करने की प्रक्रिया को टालना जारी रखकर असफल ही साबित हुए ह।”
भारत ने 1986 में अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक संधि (CCIT) पर संयुक्त राष्ट्र में एक मसौदा दस्तावेज का प्रस्ताव रखा था, लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया जा सका है, क्योंकि सदस्य देशों के बीच आतंकवाद की परिभाषा को लेकर सर्वसम्मति नहीं बनी है। भारतीय राजनयिक ने कहा कि किसी भी संस्थान की प्रभावशीलता, प्रासंगिकता और दीर्घकालिकता बदलते समय के अनुसार स्वयं को ढालने की उसकी क्षमता पर निर्भर करती है। सेतिया ने कहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस के इस मत से सहमत है कि वैश्विक व्यवस्था के समक्ष दबावों के खिलाफ बचाव के लिए एक जीवंत, विश्वसनीय और प्रभावी संयुक्त राष्ट्र अहम है।
भारत ने कोविड-19 वैश्विक महामारी के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाई के लिए महासचिव के नेतृत्व की सराहना की। सेतिया ने कहा कि पिछले एक साल में भारत कोविड-19 के प्रभाव को कम करने के वैश्विक प्रयासों में शामिल हुआ है। उन्होंने कहा कि ‘एक पृथ्वी एक स्वास्थ्य’ दृष्टिकोण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आह्वान देश की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है, जो 150 से अधिक देशों को दवाओं और कई विकासशील देशों को टीकों की आपूर्ति के जरिए पहले ही स्पष्ट हो चुकी है।
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