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नए निवेशकों के लिए तो सजाया दरबार, पुरानों को भूली सरकार

इंदौर ।    नए उद्योगों को निवेश के लिए आकर्षित करने के लिए ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट में पूरी राज्य सरकार लग गई। बाहरी निवेशकों के लिए जमीन, बिजली, पानी सबके लिए हाथ खोल दिए, लेकिन पहले से स्थापित उद्योग अब भी सरकार की तरफ टकटकी लगाए देख रहे हैं कि कभी तो सरकार उनकी सुध लेगी। औद्योगिक क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं का अकाल तो है ही, जमीन, बिजली, लाइसेंस, टैक्स जैसे नीतिगत मुद्दों पर भी उनकी घोर उपेक्षा हो रही है। आलम यह है कि इंदौर सहित प्रदेश के हजारों उद्योग वादों और घोषणाओं के चाक पर केवल घूम रहे हैं, लेकिन हल करने को कोई तैयार नहीं है।  सर्वाधिक परेशानी लघु उद्योगों की है। छोटे उद्योगों की आवाज या तो ऊपर तक नहीं पहुंच पाती या अनसुनी रह जाती है। बताया जाता है कि मध्य प्रदेश में 20 हजार लघु उद्योग हैं। इनमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग सात लाख लोगों को रोजगार मिल रहा है। कई उद्योग ऐसे हैं जो पंजीकृत नहीं हैं, लेकिन रोजगार देने का काम कर रहे हैं। ऐसे तमाम उद्योगों को सरकारी नुमाइंदे भी छोटा समझकर इनकी फाइलों को महीनों तक अटकाते रहते हैं।

घोषणाओं को नसीब नहीं हुई जमीन

– ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट में सरकार ने दावा किया कि प्रदेश में उद्योग लगाने के लिए तुरंत जमीन आवंटित की जाएगी और हाथोहाथ सरकारी कार्रवाई पूरी हो रही है। जमीन पर हकीकत इससे उलट नजर आ रही है। इंदौर में तीन औद्योगिक क्लस्टर अटके हुए हैं। इनमें कंफेक्शनरी क्लस्टर, टाय क्लस्टर और फर्नीचर क्लस्टर शामिल हैं।

– उद्योगों के लिए राज्य सरकार ने बीस साल पहले लुभावना नारा दिया था- सिंगल विंडो। कहा गया था कि इस सिस्टम के जरिये उद्योगों को जमीन आवंटन से लेकर फैक्ट्री लाइसेंस, बिजली कनेक्शन, विद्युत सुरक्षा, लेबर लाइसेंस, पंजीयन, बैंक लोन आदि कार्य एक ही जगह हो जाया करेंगे। दुर्भाग्य की बात है कि यह व्यवस्था ध्वस्त है। उद्यमियों को अब भी हर विभाग में भटकना पड़ रहा है। इसके बाद भी समय पर काम नहीं हो पाता।

– प्रदेश में उद्योगों को कर्ज लेना भी महंगा पड़ रहा है। बैंक से कर्ज लेने पर भी प्रदेश सरकार उनसे आधा प्रतिशत स्टांप ड्यूटी वसूलती है। अन्य प्रदेशों में कर्ज पर स्टाम्प ड्यूटी कुछ सौ रुपये से पांच हजार रुपये तक ही है। ब्याज दर में लाभ मिलने पर उद्योग अपना कर्ज एक से दूसरी बैंक में शिफ्ट करते हैं तो भी उन्हें दोबारा पूरे कर्ज के अनुपात में आधा प्रतिशत स्टाम्प ड्यूटी फिर से चुकानी पड़ रही है।

– दलहन, कपास और सोया उद्योग पर प्रदेश में मंडी शुल्क भारी पड़ रहा है। मंडी शुल्क की सबसे ज्यादा 1.70 प्रतिशत दर मध्यप्रदेश में है। अन्य राज्यों में यह 0.50 से 0.80 प्रतिशत ही है। अन्य प्रदेशों और विदेश से आयातित दलहन, कृषि उत्पाद पर भी राज्य में मंडी शुल्क वसूला जाता है, जबकि अन्य प्रदेश आयातित उपज पर मंडी शुल्क नहीं लेते। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कृषि मंत्री कमल पटेल ने पिछले साल अलग-अलग समय पर मंडी शुल्क में राहत की घोषणा की थी, लेकिन अब तक कोई अधिसूचना जारी नहीं हुई।

– सरकार ने चार साल पहले यह घोषणा की थी कि प्रदेश में उद्योग और व्यापार से इंस्पेक्टर राज खत्म कर देंगे। कुछ समय तक इस घोषणा का असर रहा, लेकिन अब फिर उद्योगों में बिना वजह अलग-अलग शासकीय विभागों के इंस्पेक्टर पहुंचने लगे हैं। इनमें फैक्ट्री इंस्पेक्टर, श्रम इंस्पेक्टर, विद्युत इंस्पेक्टर आदि शामिल हैं।

– प्रवासी भारतीय सम्मेलन और समिट से पहले शहर की सड़कों, चौराहों को तो चमका दिया गया, लेकिन औद्योगिक क्षेत्रों के हाल नहीं बदले। इंदौर के सांवेर रोड औद्योगिक क्षेत्र में पाइप लाइन के लिए बारिश से पहले सड़कों को खोदा गया था। वहां अब भी न तो सड़क निर्माण हुआ, न सुधार किया गया। पालदा औद्योगिक क्षेत्र में सड़क और ड्रेनेज की सुविधा ही नहीं है। नगर निगम निर्माण के लिए उद्योगों से ही अंशदान मांग रहा है। किसी भी औद्योगिक क्षेत्र में पेयजल आपूर्ति नहीं की जा रही है

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