किसी की सीट बदली, कोई लड़ने योग्य नहीं…10 साल बाद जम्मू-कश्मीर में चुनाव; इन नेताओं का क्या होगा?
जम्मू में बढ़ती आतंकी वारदातों को देखते हुए कयास लगाए जा रहे थे कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराना कठिन होगा. लेकिन सरकार के प्रयास रंग लाए हैं. धारा 370 हटाने के इतने साल बाद जम्मू- कश्मीर में आज विधानसभा चुनाव की घोषणा होने जा रही है. 10 साल बाद यहां चुनाव होंगे.
राज्य का स्ट्रक्चर बदल चुका है. जम्मू-कश्मीर उस तरह का राज्य बन गया है जैसी व्यवस्था दिल्ली में देखने को मिलती है. परिसीमन हो चुका है. सीटों की संख्या तय है, कुल 90 सीटों के लिए 86 लाख मतदाता मतदान करने वाले हैं. लेकिन इस बीच सवाल उठ रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर की सियासत में दखल रखने वाले बड़े नेता इस दौरान कहां होंगे.
अलगाववादियों से जुड़े कई नेता सजायाफ्ता होकर चुनाव की जंग से बाहर हो चुके हैं वहीं कई नेताओं ने चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया, कुछ ऐसे भी नेता जिनकी विधानसभाओं के गणित बदल गए हैं और वो चुनाव में कदम रखने से हिचक रहे हैं.
पहले जानिए क्या-क्या बदलेगा?
1. कोई चुनाव लड़ेगा नहीं, कोई लड़ नहीं पाएगा
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की है. उमर हाल ही में लोकसभा चुनाव में बारामूला सीट से निर्दलीय प्रत्याशी से हार गए थे. चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती भी कर चुकी हैं.
महबूबा ने कहा था कि जब तक कश्मीर को अनुच्छेद 370 और पूर्ण राज्य का दर्जा वापस नहीं मिल जाता है, तब तक वे चुनाव विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगी.
एक तरफ इन दोनों बड़े नेताओं ने चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की है, तो वहीं दूसरी तरफ ऐसे कई नेता हैं, जो चुनाव लड़ नहीं सकते हैं. इनमें बड़ा नाम अलगाववादी नेता यासीन मल्लिक का है. 2022 में यासीन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.
2. मैदान में नहीं दिखेगी ये 2 राजनीतिक पार्टियां
जम्मू कश्मीर के चुनाव में अलगाववादी नेता शब्बीर शाह की पार्टी जम्मू-कश्मीर फ्रीडम पार्टी और नईम खान की पार्टी जम्मू कश्मीर नेशनल फ्रंट चुनावी रण में नहीं उतर पाएगी. दोनों ही पार्टियों पर 2023 में केंद्र सरकार ने बैन लगा दिया था.
बैन की घोषणा गृह मंत्रालय ने की थी. इन पार्टियों पर अवैध गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है. शब्बीर शाह ने 1998 में अपनी पार्टी का गठन किया था. अनुच्छेद 370 हटने के बाद से ही शब्बीर जेल में बंद हैं. उन पर यूएपीए के तहत केस दर्ज है.
इसी तरह नईम खान भी अभी जेल में बंद हैं. नईम के भाई मुनीर हालिया लोकसभा चुनाव में बारामूला सीट से मैदान में उतरे थे, लेकिन उन्हें सिर्फ दो हजार वोट मिले.
3. इन नेताओं की विधानसभा सीट रिजर्व हो गई
नाजिर अहमद खान बारामूला के गुरेज से 3 बार विधायक रह चुके हैं. अब वे इस सीट से चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. गुरेज सीट को नए परिसीमन में चुनाव आयोग ने आदिवासियों के लिए रिजर्व कर दिया है. यही हाल कंगन, कोकेमाग, राजौरी, बुद्धल, सूरनकोट और मेंधार सीट की है.
चुनाव आयोग ने इन सीटों को भी आदिवासियों के लिए रिजर्व घोषित किया है. यहां के नेता अब अपने लिए सुरक्षित सीट की तलाश में जुट गए हैं. दिलचस्प बात है कि जिन सीटों को आदिवासियों के लिए रिजर्व किया गया है, उनमें से अधिकांश सीटों पर 2014 में नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी को जीत मिली थी.
नए परिसीमन की वजह से इस बार संग्रामा सीट आस्तित्व से खत्म हो गई है. यहां चुनाव लड़ने वाले नेताओं को अब अपने लिए ई सीटें ढूंढनी पड़ेगी.
4. 87 नहीं इस बार 90 सीटों पर होगा चुनाव
2014 में 87 सीटों के लिए चुनाव कराया गया था, जहां बहुमत के लिए 44 सीटों की जरूरत थी. इस बार 90 सीटों पर चुनाव कराया जाएगा. बहुमत के लिए किसी भी पार्टी या गठबंधन को 46 सीटों पर जीतना जरूरी होगा. जम्मू रीजन में विधानसभा की 43 और कश्मीर रीजन में 47 सीट है. इस बार सरकार बनाने में दोनों रीजन की भूमिका अहम होगी.
5. सरकार तो बनेगी, लेकिन पावर कट के साथ
जम्मू-कश्मीर में इस बार चुनाव से सरकार तो बनेगी लेकिन उसके पास पहले की तरह पावर नहीं होंगे. कश्मीर अभी केंद्रशासित प्रदेश हैं और वहां पर उपराज्यपाल के पास कई सारी शक्तियां हैं. उपराज्यपाल के आदेश के बिना कोई भी फैसला नहीं हो सकता है. उपराज्यपाल केंद्र सरकार का प्रतिनिधि होता है.
पहले जम्मू-कश्मीर में केंद्र का दखल बहुत ही कम होता था. केंद्र की ओर से भेजे गए राज्यपाल रक्षा और संचार जैसे अहम मामले में ही दखल दे सकते थे.
अब जानिए इन नेताओं का क्या होगा?
1. उमर अब्दुल्ला- खुद चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर चुके हैं, लेकिन नेशनल कॉन्फ्रेंस के चेहरा होने के नाते प्रचार कर सकते हैं. उमर की पार्टी घाटी में 37-40 सीटों पर लड़ सकती है. पार्टी का कांग्रेस के साथ गठबंधन है.
2. महबूबा मुफ्ती- जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की वापसी तक चुनाव नहीं लड़ने की कसम खाई हुई हैं. हालांकि, पहले भी उन्होंने कई वादे तोड़े हैं. ऐसे में इस बार कयास लगाए जा रहे हैं कि महबूबा इन कसमों को तोड़कर चुनावी रण में उतरे.
3. गुलाम नबी आजाद- पहले कांग्रेस में थे और अब खुद की पार्टी बना रखी है. हालांकि, लोकसभा चुनाव में मैदान में नहीं उतरे. विधानसभा में क्या करेंगे, इस पर सस्पेंस बरकरार है.
4. शब्बीर शाह- अभी जेल में बंद हैं, इसलिए उनके चुनाव लड़ने की संभावनाएं कम है. लोकसभा में नहीं लड़े थे. हालांकि, विधानसभा को लेकर कोई ऐलान अभी नहीं किया है.
5. फारूक अब्दुल्ला- जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ने इस बार विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की है. फारूक ने कहा है कि मैं चुनाव लड़ूंगा और जीता तो मुख्यमंत्री भी बनूंगा.
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