क्या प्रशांत किशोर बनेंगे बिहार के ‘केजरीवाल’, लालू-नीतीश किसके लिए होंगे खतरनाक?
बिहार के गांव-कस्बों को मथने के बाद प्रशांत किशोर बुधवार को अपने जन सुराज संगठन को सियासी दल के तौर पर तब्दील करने जा रहे हैं. प्रशांत किशोर गांधी जयंती यानी दो अक्टूबर को पटना के वेटनरी कॉलेज ग्राउंड में अपनी पार्टी की लॉन्चिंग का ऐलान करेंगे. चुनावी रणनीतिकार के तौर पर प्रशांत किशोर अभी तक एक वकील की तरह अपने मुवक्किल यानी पार्टी को जिताने का उपाय और दांव पेंच सेट किया करते थे, लेकिन अब एक सियासी दल के तौर पर उनकी अग्निपरीक्षा बिहार में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में होगी?
बिहार की आवाम को प्रशांत किशोर पिछले दो सालों से उसी तरह से वैकल्पिक राजनीति का सपना दिखा रहे हैं, जिस तरह से दिल्ली की सियासत में अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन करके कांग्रेस और बीजेपी का विकल्प बनी. इसी तरह से पीके ने भी बिहार में आरजेडी, बीजेपी और जेडीयू का सियासी विकल्प बनने के लिए ही जन सुराज को सियासी दल के तौर गठन करने की पटकथा लिखी है. जेडीयू और आरजेडी की सियासी पकड़ से बिहार को निकालने और अगले दस सालों में प्रदेश को अव्वल बनाने की रूपरेखा रखने के साथ प्रशांत किशोर अपनी पार्टी का एजेंडा और संगठन का ढांचा सबके सामने रखेंगे.
प्रशांत किशोर कैसे चमका रहे अपनी राजनीति?
प्रशांत किशोर अब जन स्वराज पार्टी के जरिए बिहार विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाएंगे. सियासत में दो-तीन फीसदी वोटों के इधर-उधर होने से सारा राजनीतिक खेल बदल जाता है. सियासत में चुनावी खेल बनाने बिगाड़ने के पीके माहिर रहे हैं. प्रशांत किशोर गुजरात, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और पश्चिम बंगाल में चुनावी रणनीतिकार के तौर पर अपनी काबिलियत साबित कर चुके हैं. उन्होंने यह करिश्मा एक चुनावी स्ट्रैटेजिस्ट के तौर पर किया था, लेकिन सियासी नेता के तौर पर अब उन्हें खुद को साबित करना होगा.
बिहार की सियासत में पीके की एंट्री से पहले ही सियासी नफा-नुकसान का आकलन राजनीतिक दल करने में लग गए हैं. प्रशांत किशोर बिहार को राजनीति के जातीय चक्रव्यूह से बाहर निकालने का ताना बाना बुन रहे हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि बिना इसके जगह बनाना आसान नहीं है. बिहार में आरजेडी और जेडीयू का अपना एक अलग वोट बैंक और जातीय आधार है. इसीलिए पीके बिहार के दोनों बड़े दलों को अपने सवालों के चक्रव्यूह में उलझाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. इसीलिए जाति के इर्द-गिर्द सिमटी बिहार की सियासत में सभी समाज को साथ लेकर चलने का दावा करते हैं. इसके लिए जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी देने का भी ऐलान कर रहे हैं.
बिहार में आरजेडी का कोर वोट बैंक यादव और मुस्लिम माना जाता है. पिछले तीन दशक से आरजेडी के साथ दोनों ही वोट बैंक जुडे हुए हैं. इसी तरह जेडीयू का वोट बैंक मुख्य रूप से कुर्मी-कोइरी के अलावा अति पिछड़ी जाति का है. बिहार में बीजेपी का सियासी आधार सवर्ण जातियां-भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत और कायस्थ के बीच है. ऐसे ही जीतन राम मांझी और चिराग पासवान की पार्टी का आधार दलित वोटों के बीच है. इन्हीं वोट बैंक के सहारे ये सभी दल चुनाव में अपने-अपने सियासी दांव-पेंच सेट करते रहे हैं. इन दलों के वोट बैंक में सेंधमारी किए बिना प्रशांत किशोर के लिए बिहार की राजनीति में अपनी जगह बनाना आसान हीहै.
बिहार में किस समुदाय की कितनी भागेदारी?
प्रशांत किशोर ब्राह्मण समुदाय से आते हैं. अब जब बिहार के सियासी पिच पर वो उतरने जा रहे हैं तो विपक्षी दल उन्हें प्रशांत किशोर पांडेय से संबोधित कर रहे हैं. इस तरह आरजेडी से लेकर जेडीयू तक के नेता यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि प्रशांत किशोर का ताल्लुक ब्राह्मण समाज से है. बिहार में ब्राह्मणों की कुल आबादी 3.65 फीसदी है और सभी सवर्ण जातियों को अगर जोड़ देते है तो 15.52 फीसदी होती है. प्रशांत किशोर अगर सवर्ण जातियों को अपने साथ जोड़ने में सफल रहते हैं तो इसका सियासी असर बीजेपी और जेडीयू पर पड़ेगा.
बिहार में सवर्ण वोटों के सहारे सत्ता के सिंहासन तक नहीं पहुंचा जा सकता है क्योंकि नब्बे के दशक के बाद पूरी सियासत बदल गई है. ओबीसी और दलित जातियां बिहार में अहम हो गई हैं और उन्हीं के हाथों में सत्ता की चाबी है. बिहार के जातीय समीकरण देखें तो अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी 63.13 फीसदी है, जिसमें अति पिछड़ा वर्ग की हिस्सेदारी 36.01 फीसदी तो पिछड़ा वर्ग 27.12 फीसदी है. अनुसूचित जाति 19.65 फीसदी, अनुसूचित जनजाति 1.68 फीसदी और मुस्लिम आबादी 17.70 फीसदी है.
प्रशांत किशोर इस बात को बखूबी समझते हैं कि सवर्ण जातियों के सहारे बिहार की सियासी नैया पार नहीं हो सकती है, जिसके लिए उनकी आरजेडी और जेडीयू के वोट बैंक में सेंधमारी करने की स्ट्रैटेजी है. इस लिए वो दलित, मुस्लिम और अति पिछड़ा वोट बैंक को अपने साथ जोड़ने की स्ट्रैटेजी पर काम कर रहे हैं. बिहार की सियासत सामाजिक न्याय की राजनीति से निकलने वाले नेता लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. 2005 से नीतीश कुमार सीएम हैं. उससे पहले लालू यादव और राबड़ी देवी मुख्यमंत्री रही हैं. आरजेडी और जेडीयू दोनों दलित, मुस्लिम और अति पिछड़ा के दम पर सत्ता पर काबिज रही हैं, जिसे अब पीके अपने साथ लेने की कोशिश में हैं.
बिहार के लोगों को कैसे साध रहे हैं प्रशांत?
बिहार के मुस्लिमों को आकर्षित करने के लिए प्रशांत किशोर हर दांव चल रहे हैं और लालू यादव ने कैसे उन्हें ठगा है, उसे भी याद दिला रहे हैं. मुसलमानों के अलावा प्रशांत किशोर कुछ इस तरह की बात दलितों से भी कहते हैं. बिहार में पार्टियों ने दलित नेताओं का सिर्फ इस्तेमाल किया है. दलित और मुस्लिम के साथ अतिपिछड़ी जातियों को भी जोड़कर प्रशांत किशोर की आरजेडी और जेडीयू के वोट बैंक में सेंधमारी करने की रणनीति है. पीके बिहार के मुस्लिम को जोड़कर आरजेडी का सियासी समीकरण बिगाड़ने का दांव चल रहे हैं, तो अतिपिछड़ी जातियों के जरिए जेडीयू को चोट देना चाहते हैं.
प्रशांत किशोर और उनकी पार्टी की स्ट्रैटेजी है कि बिहार में ऐसे लोगों को साधा जाए, जो सुविधाविहीन हैं. बेरोजगार और भूमिहीन हैं. ऐसे लोगों को अपने परिवार के लिए पलायन करना पड़ता है. पीके ने यह घोषणा कर रखी है कि उनकी पार्टी का पहला अध्यक्ष कोई दलित समुदाय से होगा. ऐसे में जाहिर तौर पर पीके जिस राजनीति पर बढ़ रहे हैं, उसमें उनका फोकस मुस्लिम, अतिपिछड़ा और दलित समीकरण पर है. ऐसे में देखना है कि पीके क्या इन समुदाय को अपने साथ जोड़ने में सफल रहते हैं या फिर वो अपनी पुरानी पार्टी के साथ बने रहेंगे. इस पर ही पीके की सियासत टिकी हुई है.
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