नीतीश अपने ही अफसरों के सामने बार-बार हाथ क्यों जोड़ते हैं? पुराने अंदाज से अलग कर रहे व्यवहार
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर होम सेक्रेटरी और डीजीपी के सामने हाथ जोड़कर काम करने की विनती करते देखे गए. ऐसा पहली बार नहीं है, इन दिनों नीतीश कब किसके आगे हाथ जोड़कर खड़े हो जाएं या फिर नतमस्तक हो जाएं ये कोई नहीं जानता है. इसलिए नीतीश कुमार के आस-पास अफसरों की घेराबंदी बढ़ा दी गई है. इसी वजह से नीतीश अब आम लोगों और मीडिया से बातचीत कम करने लगे हैं जो उनकी पहचान से बिल्कुल उलट है. कहा जा रहा है कि नीतीश अपने ओरिजिनल रूप में नहीं हैं. इसलिए आजकल आम लोगों और मीडिया से उन्हें दूर ही रखा जा रहा है.
नीतीश कुमार अपने पुराने अंदाज से अलग हटकर व्यवहार कर रहे हैं जो अधिकारियों और राजनीतिक गलियारे में चर्चा का विषय बना हुआ है. दबी जुबान में अधिकारी और कई नेता नीतीश कुमार की बीमारी को लेकर चर्चा भी करते हैं, लेकिन पब्लिक प्लेटफॉर्म से अपने मन की बात करने से कई नेता बचते हैं. कुछ ऐसी बात जरूर है जो नीतीश कुमार को उनके पुराने अंदाज से बिल्कुल अलग प्रदर्शित करती है. इसलिए नीतीश कुमार गिने चुने सार्वजनिक फंक्शन में नजर आते हैं और अधिकारियों की ओर से मीडिया को दूर रखा जा रहा है.
अपने अधिकारियों के सामने नतमस्तक क्यों हो रहे हैं नीतीश ?
कहा जा रहा है कि नीतीश कब क्या बोल देंगे और कैसा व्यवहार कर देंगे जो उनकी इमेज को खराब कर सकता है. इसलिए अधिकारी नीतीश कुमार को मीडिया से दूर रखने में ही भलाई समझ रहे हैं, लेकिन कई मौकों पर हैरतअंगेज व्यवहार कर वो लोगों के बीच चर्चा का विषय बन ही जाते हैं. जरा सोचिए कि इन दिनों नीतीश अपने अधिकारियों के सामने हाथ जोड़कर विनती करते देखे जा रहे हैं. सोमवार को नीतीश कुमार ने पुलिस में बहाली को लेकर होम सेक्रेटरी और डीजीपी के आगे हाथ जोड़ते देखे गए. होम सेक्रेटरी को स्टेज पर आकर नौकरी की बात पूरी करनी पड़ी.
जाहिर है नीतीश चुनाव में जाने से पहले 12 लाख लोगों को नौकरी देना चाहते हैं. वहीं पुलिस में 35 फीसदी आबादी महिलाओं का हो इसका प्रयास भी वो तेज करना चाह रहे हैं, लेकिन अपनी बात को मनवाने के लिए अपने मातहत अधिकारियों के आगे विनती करना मुख्यमंत्री के स्वाभाविक तौर तरीकों से बिल्कुल अलग है. यही वजह है कि नीतीश कुमार नॉर्मल नहीं हैं ये चर्चा फिर तेज होने लगी है.
कुछ दिन पहले इंजीनिरों के सामने हाथ जोड़ते देखे गए थे
कुछ दिनों पहले भी पुल बनाने को लेकर विभाग के इंजीनियरों के सामने नीतीश हाथ जोड़ते देखे गए थे. वहीं पीएम के साथ घटक दलों की मीटिंग हो या फिर एक दो मौके पर पीएम मोदी के पैर छूने को लेकर नीतीश कुमार खासे चर्चा में रहे हैं. जाहिर है उनके व्यवहार की वजह से नीतीश कुमार के स्वास्थ्य के बारे में सवाल उठ रहे हैं और विपक्ष भी आए दिन इन मुद्दों को लेकर नीतीश कुमार को सवालों के घेरे में लेने लगा है. विपक्ष नीतीश कुमार को थका हुआ बताता है, लेकिन थके नजर आ रहे नीतीश के नेतृत्व में बीजेपी चुनाव लड़ने को लेकर क्यों तैयार हुई हैं ये बीजेपी प्रदेश इकाई के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है.
क्यों परेशान है बिहार बीजेपी की प्रदेश इकाई?
बिहार बीजेपी इकाई के कई नेता नीतीश कुमार के साथ गठबंधन को लेकर सहज नहीं थे, लेकिन केन्द्रीय नेताओं के सामने प्रदेश इकाई की एक न चली. ये प्रदेश इकाई के कई नेता दबी जुबान में कहते सुने जा सकते हैं. बिहार बीजेपी प्रदेश इकाई के कई नेता कहते हैं कि नीतीश कुमार एक तो स्वस्थ नहीं हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी आड़ में भ्रष्ट अधिकारी बिहार में मलाई बांट रहे हैं. इसलिए विधानसभा चुनाव में जनता इस बार नीतीश कुमार को गद्दी से हटाएगी ये लगने लगा है.
जाहिर है बीजेपी नीतीश कुमार के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी का बैगेज अपने कंधे पर धोने की पक्षधर नहीं है, लेकिन केंद्र में सरकार बचाए रखने के लिए बीजेपी को नीतीश के 12 सांसदों की दरकार है. इसलिए प्रदेश इकाई भीतर ही भीतर कुढरही है. कहा जा रहा है कि साल 2024 लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद नीतीश और नायडू के साथ केंद्र में बने रहना बीजेपी की मजबूरी है.
बीजेपी के नेता भी चुप्पी साधे हुए हैं
इसलिए नीतीश कुमार के नेतृत्व को लेकर प्रदेश में दिग्गज नेता हथियार डाल चुके हैं. खराब सेहत हो या एंटी इनकम्बेंसी, बीजेपी केंद्र में सरकार बनाए रखने के लिए प्रदेश में नीतीश के नेतृत्व से अलग होने की पक्षधर नहीं है. यही वजह है कि नीतीश की कई नीतियां अब जमीन पर असफल हैं, लेकिन उसे ठीक करने को लेकर बीजेपी के नेता भी चुप्पी साधे हुए हैं.
ये कई बार साबित हो चुका है कि नीतीश के बगैर बिहार की राजनीति में नंबर 1 होना संभव नहीं है. इसलिए केंद्र की बीजेपी सरकार का मानना है कि बिहार में महागठबंधन को हराए रखने के लिए नीतीश का साथ बेहद जरूरी है. यही वजह है कि नीतीश बीमार क्यों न हों, लेकिन वो अलग हुए तो बिहार में सर्वाधिक लोकसभा सीट जीतने से लेकर विधानसभा चुनाव जीतना बीजेपी को नामुमकिन सा दिख रहा है.
पांच साल आगे राजनीति करने की हालत में हैं नीतीश?
एनडीए नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है. वहीं नीतीश कुमार का मीडिया और आम लोगों से अक्सर दूरी बनाए रखना लोगों के बीच कौतूहल का विषय बना हुआ है. जेडीयू के सर्वाइवल से लेकर मनीष वर्मा को महासचिव बनाए जाने की बात पर लंबी मंत्रणा चल रही है. जानकार मानते हैं कि नीतीश को कवर कर छिपाया जा रहा है, लेकिन नीतीश की राजनीतिक पारी पूरी तरह ढलान पर है. ऐसे में चुनाव भले ही नीतीश के नेतृत्व में लड़ा जाए, लेकिन नीतीश अगले पांच साल तक राजनीति पर मजबूत पकड़ कायम रख सकेंगे इसकी संभावना कम ही है.
मनीष वर्मा को लेकर भी उठ रहे सवाल
मनीष वर्मा का जेडीयू महासचिव के तौर पर कार्यकर्ताओं के बीच जाना कई सवालों को जन्म दे रहा है. ऐसे में ये चर्चा आम है कि जेपी युग के नेताओं का अंत समीप है. लालू प्रसाद थक चुके हैं, वहीं रामविलास पासवान ,सुशील मोदी और शरद यादव सरीखे नेता अब हैं नहीं. इसलिए कहा जा रहा है कि नीतीश बड़े नेताओं की अंतिम कड़ी हैं, जिन्हें लेकर अगले पांच सालों तक चुस्त और दुरूस्त उम्मीद करना यथार्थ से कोसों दूर है. वन मैन पार्टी जेडीयू नीतीश के बाद मजबूत रह पाएगी इसको लेकर सियासी गलियारे में चर्चा तेज हो गई है. पार्टी में नीतीश का वारिश कौन होगा ये भविष्य के गर्भ में है, लेकिन उनकी जगह कौन लेगा ये चर्चा भी जोरों पर है.
उम्मीद नए पौध तेजस्वी यादव, चिराग पासवान, सम्राट चौधरी, विजय सिन्हा और संजय झा सरीखे नेताओं से है. वहीं राजनीति में नई एंट्री करने वाले पीके राजनीतिक दशा दिशा में क्या बदलाव करेंगे इस पर भी लोगों की निगाहें टिकी हुई हैं. ऐसे में आने वाले विधानसभा चुनाव में सरकार नीतीश की बनती भी है तो नीतीश के नेतृत्व में कब तक चलेगी इसको लेकर उहापोह की स्थिती जरूर है.
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