मप्र में कम हुए बाल विवाह के मामले
- प्रशासन की सतर्कता का दिखा असर
भोपाल । बाल विवाह मध्य प्रदेश में भी एक बड़ी सामाजिक बुराई है। असम में बाल विवाह करने वाले करीब 2000 लोगों को गिरफ्तार करने की कार्रवाई के परिप्रेक्ष्य में देखें तो प्रदेश में बाल विवाह के प्रकरणों में लगातार कमी आ रही है।वर्ष 2015 में सौ में से 32 मामलों में प्रकरण दर्ज होते थे, जो वर्ष 2020 में घटकर नौ प्रतिशत रह गए हैं। वित्तीय वर्ष 2021-22 में प्रदेश में बाल विवाह के 1028 मामले सामने आए। इनमें से शौर्यादल, जिला प्रशासन ने 1022 बाल विवाह रुकवाए, जबकि छह मामलों में प्रकरण दर्ज किए हैं। शेष 1022 मामलों में वर एवं वधु पक्ष को समझाइश देकर या कानून का डर दिखाकर विवाह से रोका गया। इस साल भी विवाह मुहूर्त शुरू होते ही महिला एवं बाल विकास विभाग सक्रिय हो गया है और मुखबिर तंत्र बनाने पर जोर दे रहा है। सभी कलेक्टरों को इस संबंध में पत्र लिखा गया है। वे गांव-गांव में मुखबिर तैयार करेंगे, जो बाल विवाह की स्थिति में प्रशासकीय अधिकारी या पुलिस को सूचना देंगे। इसके अलावा शिक्षक, एएनएम, आशा एवं ऊषा कार्यकर्ता, स्व-सहायता समूह की सदस्य, शौर्यादल की सदस्य, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका, मातृ सहयोगिनी समिति, सरपंच, पंच, ग्राम सचिव सहित अन्य की सेवाएं भी ली जाएंगी।जिला प्रशासन को खासकर ऐसे विवाह कार्यक्रमों पर विशेष नजर रखने को कहा गया है, जो शहर से दूर एकांत स्थान पर किए जाते हैं। वहीं शहरों में भी बड़े आयोजनों पर नजर रखने के निर्देश हैं। हर बार की तरह प्रिंटिंग प्रेस, हलवाई, धर्मगुरु, बैंड पार्टी, ट्रांसपोर्ट और समाज के मुखिया से कहा जाएगा कि वर और वधु के आयु का प्रमाण लेकर ही विवाह कार्यक्रम में सेवाएं दें।
इनका कहना है
बाल विवाह रोकने को लेकर तैयारी शुरू कर दी है। मैदानी सरकारी कर्मचारियों के अलावा जागरूक नागरिक भी ऐसे मामलों की सूचना देते हैं। अब तो बेटियां भी समझदार हो चुकी हैं, वे भी सूचना पहुंचा देती हैं और हम ऐसे विवाह रुकवा देते हैं।
डा. रामराव भोंसले, संचालक, महिला एवं बाल विकास संचालनालय
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