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नीतीश कुमार ही नहीं चाहते कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले : प्रशांत किशोर

सारण। जन सुराज पदयात्रा के 183वें दिन की शुरुआत सारण के छपरा सदर प्रखंड अंतर्गत पूर्वी तेलपा पंचायत स्थित पदयात्रा कैंप में सर्वधर्म प्रार्थना से हुई। उसके बाद प्रशांत किशोर ने जिले के पत्रकारों के साथ संवाद किया। इसके बाद प्रशांत किशोर सैकड़ों पदयात्रियों के साथ पूर्वी तेलपा पंचायत से पदयात्रा के लिए छपरा शहर में निकले। प्रशांत किशोर की पदयात्रा का सारण में आज 20वां दिन है। इस दौरान वे जिले के अलग-अलग प्रखंडों के सैकड़ों गांवों में गए स्थानीय लोगों के साथ संवाद स्थापित कर उनकी समस्याओं को समझ कर उसका संकलन कर उसके समाधान के लिए ब्लू प्रिंट तैयार करने की बात कही। आज दिनभर की पदयात्रा के दौरान प्रशांत किशोर 2 पंचायत के 4 गांवों से गुजरते हुए 9 किमी की पदयात्रा तय की। वहीं जन सुराज पदयात्रा के दौरान सारण के छपरा में मीडिया संवाद कार्यक्रम के दौरान सीएम नीतीश कुमार पर हमला करते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग नीतीश कुमार और अन्य दल तभी करते हैं, जब उनको उसका राजनीतिक लाभ हो। नीतीश कुमार जब केंद्र के विपक्ष में होते हैं, तब वो विशेष राज्य की मांग करते हैं। नीतीश कुमार के 17 साल के शासनकाल में 15 साल वो भाजपा के साथ सरकार में रहे है और उन 15 सालों में करीब 10 साल भाजपा केंन्द्र में रही है, उसके बाद नीतीश कुमार ये कहते हैं कि केंद्र सरकर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दे रही है। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलने से बिहार को ज्यादा लाभ नहीं होगा। बिहार में आईटी पार्क नहीं है, बिहार में चीनी मिल नहीं है, इन समस्याओं का विशेष राज्य से कोई लेना देना नहीं है। जब चंपारण और सारण प्रमंडल में 50 चीनी मिल थे, तब उस समय बिहार विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं था। लेकिन आज विशेष राज्य की मांग को राजनीति से जोड़ दिया गया है। वहीं छपरा में पत्रकार वार्ता के दौरान बिहार में बढ़ रही आपराधिक घटनाओं का जिक्र करते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि पदयात्रा के दौरान पिछले 2 महीने से कानून व्यवस्था को लेकर लोगों की चिंता के बारे में सबसे ज्यादा सुन रहा हूं। जब चंपारण से पदयात्रा शुरू हुई थी तब एक दो लोग कहते थे कि महागठबंधन के सत्ता में आने के बाद कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है। लेकिन पिछले 2 महीने से सुनने को मिल रहा है कि कानून व्यवस्था बहुत तेजी से बिगड़ी है। लोग सिवान और छपरा में हर दिन हत्या, लूटपाट, डकैती, रंगदारी जैसे मामले की चर्चा कर रहे है। पूरे बिहार में इस साल 15 से ज्यादा मुखिया और 6 से ज्यादा सरपंचों को गोली मार दी गई है। बिगड़ती हुई कानून व्यवस्था पिछले 2 महीनों में एक गंभीर समस्या बन गई है। वहीं जन सुराज पदयात्रा के दौरान छपरा में मीडिया संवाद के दौरान प्रशांत किशोर ने कहा कि यदि लोग सही तरीके से वोट करते हैं और एक सही विकल्प सत्ता में आ जाता है, जो बिहार के लोगों के द्वारा बनाया गया हो उसके पास एक सोची समझी योजना होनी चाहिए। पदयात्रा का जो तीसरा उद्देश्य है कि शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, कृषि, शहरी विकास, ग्रामीण विकास, सामाजिक न्याय, खेल-कूद आदि जैसे 10 महत्वपूर्ण क्षेत्र के लिए एक 10 साल की सोची समझी योजना बनाई जाए। ऐसी योजना जो अफसरों के द्वारा ऑफिस में बैठकर नहीं बनाई गई हो। गाँव-गाँव से लोगों से सुझाव लेकर एक ऐसी योजना बना रहे हैं ताकि अगले 10 सालों में बिहार को देश के 10 अग्रणी राज्यों में शामिल किया जा सके। वहीं जन सुराज पदयात्रा के दौरान छपरा में पत्रकारों को संबोधित करते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार में एक सबसे बड़ी समस्या है किसानों के फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल पाना। पिछलें 6 महीनों में जब से पदयात्रा शुरू हुई ये वो समय है जब धान और गन्ने की फसल की कटाई हो रही है। अभी जितने भी लोग मिल रहे हैं, उनमें से 90 प्रतिशत लोग यही बताते हैं कि उनको धान 1200 से 1500 प्रति क्विंटल की दर से बेचा जा रहा है। जबकि धान का अधिकारिक मूल्य 2050 रुपए है। यही स्थिति गन्ने की फसल का है। पूरे चंपारण और सिवान में 30 से ज़्यादा चीनी मिलों के बंद हो जाने के कारण किसान या तो कम गन्ना उपजा रहे हैं या उन्होंने उपजाना बंद कर दिया है। जो किसान गन्ना उपजा रहे हैं वो चीनी मिलों की मनमानी झेल रहे हैं। मिल अपने हिसाब से गन्नों के रेट तय कर रहा है। बिहार के किसानों को फसल का सही मूल्य ना मिल पाने के कारण 20 से 25 हजार करोड़ रुपए का सालाना नुकसान हो रहा है। वहीं जन सुराज पदयात्रा के दौरान छपरा में मीडिया संवाद के दौरान बिहार की ध्वस्त शिक्षा व्यवस्था पर हमला करते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि शिक्षा व्यवस्था के ध्वस्त हो जाने के पीछे सबसे बड़ा कारण है, बिहार में समतामूलक शिक्षा व्यवस्था के नाम पर गांव-गांव में गुणवत्ता से समझौता कर खोले गए सरकारी स्कूल। आज स्कूलों में जो बच्चें व शिक्षक हैं और जो व्यवस्था है, उसमें कहीं कोई समायोजन नहीं है। जहां बिल्डिंग है, वहां शिक्षक नहीं हैं, जहां शिक्षक हैं, वहां बिल्डिंग नहीं है, और जहां दोनों हैं, वहां बच्चें नहीं हैं। कुछ लोग सोचते हैं कि नियोजित शिक्षकों की वजह से स्कूलों की ये स्थिति है, पर यही हाल कॉलेजों का भी है। बिहार के कॉलेजों में बिल्डिंग है, नियमित शिक्षक हैं, और बच्चे भी हैं लेकिन पढ़ाई वहाँ भी नहीं हो रही है। कॉलेज में बच्चे एक बार नामांकन के लिए जाते हैं। दूसरी बार एडमिट कार्ड लेकर परीक्षा देते हैं, फिर डिग्री लेकर निकल जाते हैं। बिहार की शिक्षा व्यवस्था उत्क्रमित स्कूलों और नियोजित शिक्षकों का एक जाल है। यहां स्कूलों में सिर्फ खिचड़ी बांटी जा रही है और कॉलेजों में सिर्फ डिग्री बांटी जा रही है, पढ़ाई दोनों में से कहीं नहीं हो रही है।

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