सास-ससुर की सेवा ना करना क्रूरता नहीं, पत्नी से तलाक लेने पति पहुंचा था कोर्ट; अदालत ने क्या कहा?
वक्त के साथ सामाजिक सरोकार और रिश्तों के कर्तव्य बोध के मायने भी बदल रहे हैं. एक पति सिर्फ इसलिए तलाक लेना चाहता था कि क्योंकि पत्नी सास-ससुर के साथ नहीं रहती थी. पति के मुताबिक, सास-ससुर की सेवा न करना क्रूरता है. यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंता, जहां कोर्ट ने पति की याचिका खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि बहू की ओर से सास-ससुर की सेवा न करना क्रूरता नहीं कहा जा सकता. विशेष कर तब वो भी तब, जब पति खुद मां-बाप से अलग रहता हो. हाई कोर्ट ने इसी आधार पर पति को पत्नी से तलाक देने से इनकार कर दिया है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा कि बहू की ओर से सास-ससुर की उचित देखभाल नहीं करना क्रूरता नहीं है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि यह मामला तब और भी कमजोर हो जाता है, जब पत्नी पर आरोप लगाने वाला पति खुद अपने मां-बाप से अलग रहता हो और पत्नी से उनकी सेवा व उचित देखभाल की उम्मीद करता हो. इसी आधार पर कोर्ट ने याचिका दाखिल करने वाले पति की याचिका को खारिज कर दिया है.
क्या है पूरा मामला?
यह मामला के पूर्व पुलिस अधिकारी ज्योतिष चंद्र थपलियाल से जुड़ा है. उमेश की शादी देवेश्वरी थपलियाल नाम की महिला से हुई है. काम के सिलसिले में दंपती अपने माता-पिता से अलग रहते थे. ज्योतिष चंद्र चाहते थे कि उनकी पत्नी उनके माता-पिता यानी अपने सास ससुर के साथ रहे.
फैमिली कोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी थी
पत्नी देवेश्वरी चाहती थी कि वह अपने पति के ही साथ ही रहें. बस यहीं विवाद बढ़ गया. मामला पारिवारिक अदालत पहुंचा. फैमिली कोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी थी. आरोप लगाया गया कि पत्नी उनके माता-पिता की उचित देखभाल नहीं कर रही. उचित देखभाल नहीं करने की वजह से उसके व्यवहार को क्रूरता के नजरिए से देखा जाना चाहिए और उसकी तलाक की अर्जी को मंजूर की जानी चाहिए. मामले में लंबी सुनवाई के बाद मुरादाबाद की फैमिली कोर्ट ने पति ज्योतिष चंद थपलियाल की अर्जी को खारिज कर दिया.
फैमिली कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि पति खुद अपने माता-पिता के साथ नहीं रहता. वह उनसे अलग रहता है, ऐसे में पत्नी द्वारा उनके साथ रहने से इनकार करना पति की मनमर्जी के मुताबिक उनकी उचित देखभाल न करना कतई क्रूरता नहीं कहलाएगा और ना ही तलाक का आधार बनेगा. इलाहबाद हाईकोर्ट ने भी फैमिली कोर्ट के इसी आदेश पर मुहर लगा दी. याचिका कर्ता को अदालत ने राहत देने से इनकार कर दिया.
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