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ग्वालियर से उज्जैन आई सिंधिया राजवंश की शाही पगड़ी, कालभैरव को कराएंगे धारण

उज्जैन। डोलग्यारस पर मंगलवार को भगवान कालभैरव को सिंधिया शाही की पगड़ी धारण कराई जाएगी। ग्वालियर के सिंधिया राजवंश से रविवार को शाही पगड़ी उज्जैन पहुंची। परंपरा अनुसार राजघराने के ओहदेदारों ने महाकाल मंदिर के पं.संजय पुजारी को पगड़ी सुपुर्द की है। मंगलवार दोपहर 3.30 बजे वे पगड़ी लेकर कालभैरव मंदिर पहुंचेंगे। पश्चात कलेक्टर आशीषसिंह विधि विधान के साथ भगवान को शाही पगड़ी धारण कराएंगे। कालभैरव राजाधिराज भगवान महाकाल के सेनापति हैं। अवंतिकानाथ की तरह सेनापति कालभैरव भी साल में दो बार पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं। पहली सवारी अगहन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर निकलती है। दूसरी सवारी भादौ मास के शुक्ल पक्ष की डोलग्यारस पर निकाली जाती है। दोनों ही सवारियों में नगर भ्रमण से पहले भगवान कालभैरव को सिंधिया राजवंश की ओर से पगड़ी धारण कराई जाती है। इसके बाद पालकी का पूजन होता है और बाबा जनकल्याण के लिए नगर भ्रमण पर निकलते हैं। अब तक भगवान कालभैरव लकड़ी से बनी पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण करते आए हैं। इस बार मंदिर प्रशासक कैलाशचंद्र तिवारी के मार्गदर्शन में ग्वालियर के दानदाता संदीप मित्तल ने 15 किलो चांदी से नई पालकी का निर्माण कराया है। बाबा कालभैरव सागी की लकड़ी से निर्मित रजत मंडित पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलेंगे।
गोपालजी को धारण कराएंगे सिंघाड़े की माला
डोलग्यारस पर सिंधिया देव स्थान ट्रस्ट के प्रसिद्ध गोपाल मंदिर से डोल निकलेगा। भगवान गोपालजी राधा, रुक्मिणी के साथ डोल रथ में सवार होकर भक्तों को दर्शन देने निकलेंगे। राजवंश की परंपरा अनुसार गोपालजी को सिंघाड़े से बनी माला पहनाई जाएगी। मंदिर प्रशासक गोपाल अजय धाकने ने बताया शाम 4 बजे पूजा अर्चना के बाद डोल चल समारोह शुरू होगा। डोल के साथ जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण को जन्म के समय पहनाए गए वस्त्रों को तीर्थ पर ले जाया जाएगा। नगर के प्रमुख मार्गों से होकर डोल इंदिरानगर स्थित सोलह सागर पहुंचेगा। यहां पूजा अर्चना के बाद डोल पुनः मंदिर की ओर रवाना होगा।

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