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बदलता वक्त: शहर की आधी आबादी कर रही कार की सवारी पकड़ रही रफ्तार

 ग्वालियर। एक वक्त हुआ करता था, जब लोग महिलाओं को कार चलाता देखकर हैरान होते थे। जब भी कहीं जाना होता था तो चुनिंदा महिलाएं ही चार पहिया वाहन चलाती थीं। अधिकतर महिलाएं किसी न किसी पुरुष पर ही निर्भर होती थीं। अब वक्त और माहौल बदल रहा है। महिलाओं के बीच भी कार चलाने का क्रेज बढ़ता जा रहा है। बदलते परिवेश के साथ महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं। हालांकि कार चलाने वाली इन महिलाओं में अधिकतर कामकाज से जुड़ी हुई हैं। महिलाएं ही नहीं, युवतियां भी कार में बैठकर रफ्तार भर रही हैं। कुछ युवतियां तो दूसरे शहरों में अपनी कार से ही जाना पसंद करती हैं, फिर चाहे कितनी भी दूरी हो। ड्रायविंग के मामले में बेहतर परिपक्व हो चुकी हैं।

आने जाने में होती है सहूलियत

तत्काल कभी कहीं जाना हो, कार भी घर पर रखी हो लेकिन चलाना नहीं आता है तो सिवाय किसी का इंतजार करने के कोई दूसरा रास्ता बचता नहीं है। मेरा रोजाना का घर से जीवाजी विश्वविद्यालय और विश्वविद्यालय से घर आना-जाना होता है। मुझे किसी पर निर्भर रहने से बेहतर लगा कि कार चलाना सीख लूं। अब कहीं भी आना जाना होता है तो आसानी से आती जाती हूं।

-प्रो. निमिषा जादौन

चाहती थी कार चलाना सीखूं

जब भी किसी को कार चलाता देखती थी तो लगता था कि काश मैं भी कार चला पाऊं। बहुत पहले से इच्छा थी कार सीखने की। जैसे ही मौका मिला मैंने भी कार सीख ली और जब से कार चलाना सीखा है मेरी आधी से अधिक समस्याओं का समाधान हो गया है। बेटियों को घुमाने फिराने के लिए ले जाना हो तो किसी पर निर्भर नहीं रहना होता। बेटियों को अपनी कार से सुरक्षित घुमा कर ले आती हूं।

– प्रो. उपजीत कौर

चाबी उठाकर निकल जाती हूं

कई बार ऐसा हुआ कि घर के जरूरी काम से कहीं जाना है और बैठकर किसी ऐसे व्यक्ति का इंतजार कर रहे हैं, जो कार चला लेता हो। एक दो बार ऐसा भी हुआ, कार न चला पाने के कारण काम बिगड भी गए । एक बार ख्याल आया कि कार चलाना सीखना चाहिए। हिम्मत दिखा का ड्राइविंग सीखी। कहीं भी जाना हो चाबी उठा कर निकल जाती हूं।

-सुलेखा बनवारिया

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