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संत स्वामी श्रीरंग रामानुजाचार्य जी महाराज के पार्थिव शरीर के दर्शन को उमड़ा जन सैलाब

बिहार के प्रसिद्ध वैष्णव संत स्वामी श्रीरंग रामानुजाचार्य जी महाराज का गुरुवार की शाम पटना के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. वे 90 साल के थे और पिछले काफी समय से बीमार थे. वे मगध क्षेत्र के प्रसिद्ध हुलासगंज धाम आश्रम के संस्थापक पीठाधीश थे और भक्तों के बीच रूपदेव स्वामी के नाम से जाने जाते थे. देश में रामानुजी वैष्णव समाज के शीर्ष संतों में उनकी गिनती होती थी. देश के अनेक प्रमुख शहरों और प्रसिद्ध तीर्थस्थलों पर उनके आश्रम और संस्कृत के विद्यालय हैं.

स्वामी रंगरामानुजाचार्य के बिहार समेत देश भर में लाखों अनुयायी हैं. उनके निधन से वैष्णव श्रद्धालुओं में शोक की लहर है. जहानाबाद के घोसी ब्लॉक में स्थित हुलासगंज मठ के गादीपति स्वामी रुपदेव जी के निधन से साधु संतों और अनुयायियों में शोक की लहर दौड़ गयी. अस्पताल के पास ही बड़ी संख्या में अनुनायी एकत्र हो गए. उनके निधन से ना केवल अनुयायियों में बल्कि लक्ष्मी नारायण मंदिर के आस पास के गांवों में भी मातम छा गया. मिली जानकारी के अनुसार पार्थिव शरीर को अनुयायियों के दर्शन के लिए लक्ष्मी नारायण मंदिर हुलासगंज के परिसर ले जाया गया जहां जन सैलाब उमड़ पड़ा।

स्वामी रंग रामानुजाचार्य महाराज का जन्म 10 अक्टूबर 1935 को जहानाबाद जिले के मिर्जापुर गांव में हुआ था. उनके पिता राम सेवक शर्मा के दो पुत्रों में श्री रंगरामानुजाचार्य जी महाराज का बचपन गांव में ही बीता. कक्षा दो तक अपने गांव के स्कूल में पढ़ाई की. बाद में उन्हें हाई स्कूल में शिक्षा प्राप्ति के लिए शकूराबाद हाई स्कूल में नामांकन कराया गया. इस बीच 15 वर्ष की आयु में सरौती जाकर उन्होंने स्वामी परांकुशाचार्य से दीक्षा ली. प्रथमा, मध्यमा. शास्त्री करने के बाद व्याकरण, वेदांत, न्याय आदि विषयों में आचार्य की डिग्री प्राप्त की. व्याकरण एवं न्याय शास्त्र में उन्हें स्वर्ण पदक मिला था. न्याय की पढ़ाई करने के लिए कुछ दिनों तक दरभंगा में भी रहे.

वर्ष 1969 में अपने गुरु के साथ उन्होंने हुलासगंज की धरती पर चरण रखा तथा अपने दिव्यता एवं विद्वता के बल पर स्थानीय लोगों के बीच अमिट छाप छोड़ी. वेदांत दर्शन न्याय एवं मीमांसा में आचार्य की डिग्री प्राप्त 90 वर्षीय स्वामी रंग रामानुजाचार्य जी महाराज ने अपने जीवन के 70 वर्ष धर्म- आध्यात्म- समाज एवं संस्कृति में सुधार के क्षेत्र में बड़ा काम किया है. उन्होंने भागवत रामायण, गीता पर टीका सहित अन्य 32 पुस्तकें भी लिखी जो आज भी उनके अनुयायियों के लिए पूजनीय है. बिल्कुल सरल भाषा में लिखे गए उनके पुस्तकें सनातन धर्म के लिए एक आधार माना जा रहा है.

संस्कृत भाषा के विकास तथा सनातन धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने ना सिर्फ हुलासगंज बल्कि उत्तर प्रदेश बिहार तथा उड़ीसा जैसे जगहों पर भी शैक्षणिक संस्थाओं को स्थापित किया. उनके संस्थाओं में स्वामी परांकुशाचार्य आचार्य संस्कृत उच्च विद्यालय, हुलासगंज एवं सरौती, आदर्श संस्कृत महाविद्यालय हुलासगंज, श्री राम संस्कृत महाविद्यालय सरौती, श्री वेंकटेश्वर परांकुश संस्कृत महाविद्यालय, अस्सी घाट, वाराणसी, स्वामी पराकुंशाचार्य संस्कृत महाविद्यालय, मेहंदिया प्रमुख है.

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