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शिक्षक अभियर्थियों के साथ बड़ा धोखा : प्रेम कुमार

पटना। शिक्षक अभियर्थियों के साथ बड़ा धोखा मेधा सूचि के बाद बहाली नही सपना पर पानी फेर दिया नीतीश कुमार।
आज प्रेम यूथ फाऊंडेशन और सीएमए इंस्टीट्यूट के संयुक्त तत्वाधान में बिहार सरकार राज्य भर के स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति की घोषणा और बार बार नियुक्ति प्रावधानों और प्रक्रिया में बदलाव पर विशेष चर्चा हुई।
इस अवसर पर उपस्थित प्रेम यूथ फाऊंडेशन के संस्थापक गांधीवादी प्रेम कुमार ने कहा कि नई शिक्षक भर्ती का महत्वपूर्ण कदम का उद्देश्य शिक्षा प्रणाली को मजबूत करना और बिहार के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का प्रावधान सुनिश्चित करना है। लेकिन, बिहार के स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति में डोमिसाइल नीति में छूट की विभिन्न हलकों से आलोचना हो रही है। कुछ तर्क हुए प्रेम कुमार ने कहा कि यह स्थानीय उम्मीदवारों के खिलाफ भेदभाव और न्यायसंगत नहीं है ! अधिवास नीति की छूट उन स्थानीय उम्मीदवारों के हितों को कमजोर करती है जो बिहार में पले-बढ़े हैं और स्थानीय भाषा, संस्कृति और शैक्षिक प्रणाली से परिचित हैं। बिहार में छात्रों की जरूरतों और आकांक्षाओं की बेहतर समझ रखने वाले स्थानीय उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। पुनः उन्होंने तर्क दे कर कहा कि अधिवास नीति की छूट के परिणामस्वरूप कम योग्य शिक्षकों की नियुक्ति हो सकती है। उनका तर्क है कि यह नीति गैर-स्थानीय उम्मीदवारों के लिए द्वार खोलती है जो बिहार की विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकताओं में सक्षम या अच्छी तरह से वाकिफ नहीं हो सकते हैं। यह, बदले में, राज्य में छात्रों को प्रदान की जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

इस अवसर पर उपस्थित एनजीओ हेल्पलाइन के निदेशक सीए संजय कुमार झा ने कहा कि स्थानीय अधिवास नीति की छूट के विरोधियों का तर्क है कि यह बिहार में स्थानीय शिक्षकों के लिए रोजगार के अवसरों को प्रतिबंधित करता है। उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि गैर-स्थानीय उम्मीदवारों को शिक्षण पदों के लिए प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति देकर, नीति स्थानीय शिक्षकों के लिए अपने गृह राज्य में रोजगार सुरक्षित करने की संभावना कम कर देती है। उनका दावा है कि इससे प्रतिभा पलायन होता है और राज्य की प्रतिभा का ह्रास होता है। उन्होंने कहा कि सरकार बार बार नियुक्ति प्रक्रिया के प्रावधानों में परिर्वतन कर रही है , प्रक्रिया का ऐसा जाल बुन दिया है कि नियुक्ति हो ही नहीं पाएगी. उन्होंने सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए.

सीएमए अमनुद्दीन ने कहा कि कि अधिवास नीति की छूट शिक्षा प्रणाली के भीतर सामाजिक सामंजस्य को कमजोर करती है। उनका तर्क है कि स्थानीय शिक्षक जो स्थानीय समुदाय और इसकी गतिशीलता से परिचित हैं, वे छात्रों के बीच अपनेपन और एकता की भावना पैदा करने में योगदान दे सकते हैं। गैर-स्थानीय शिक्षकों की नियुक्ति से, नीति इस सामंजस्य को बाधित कर सकती है और छात्रों के समग्र विकास में बाधा बन सकती है। उन्होंने कहा कि कि गैर-स्थानीय शिक्षकों में बिहार शिक्षा प्रणाली के विशिष्ट मुद्दों और जरूरतों की समझ का अभाव हो सकता है। उनका तर्क है कि राज्य के बाहर के शिक्षक स्थानीय पाठ्यक्रम, क्षेत्रीय चुनौतियों या सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ से अच्छी तरह वाकिफ नहीं हो सकते हैं, जो कक्षा में उनकी प्रभावशीलता को प्रभावित कर सकता है।

इस अवसर पर सीएमए इंस्टीट्यूट के सैंटर इंचार्ज एमडी आसिफ़ ने धन्याबाद ज्ञापित करते हुए कहा कि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये बिंदु नीति की संभावित आलोचनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और हर किसी के विचारों को प्रतिबिंबित नहीं कर सकते हैं। अधिवास नीति की छूट के समर्थकों के अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं, जो बढ़ी हुई प्रतिस्पर्धा के लाभों, विविध दृष्टिकोण और राज्य के बाहर से योग्य उम्मीदवारों को आकर्षित करने पर जोर देते हैं।

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