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“समान नागरिक संहिता” उत्तराखंड में लागू – अब देश में लागू होने की बारी

पटना। दुनियाँ के अधिकांश देशों में नागरिक कानून सबके लिए समान है। भारत में वोट बैंक की राजनीति करने वाले लोग “समान नागरिकता संहिता” का पुरजोड़ विरोध करते है। लेकिन किसी भी धर्मनिरपेक्ष देश के लिए कानून, धर्म के आधार पर नहीं होनी चाहिए। यदि देश और राज्य धर्मनिरपेक्ष है, तो कानून धर्म पर आधारित कैसे हो सकता है? भारत में “समान नागरिकता संहिता” लागू करने से संबंधित कुछ राज्यों में सर्वोच्च न्यायालय और उच्य न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों की अध्यक्षता में समिति बनी है, उसके समक्ष विभिन्न धर्मों के लोग अपने- अपने विचार रख रहे है। केन्द्र सरकार हर प्रकार की लोकतांत्रिक चर्चा पूरा होने के बाद ही देश में “समान नागरिक संहिता” लाने के लिए प्रतिबद्ध है। भारतीय संविधान में “समान नागरिक संहिता” का उल्लेख भाग-4 के अनुच्छेद -44 में है। इसमें नीति निर्देश दिया गया है कि “समान नागरिक कानून” लागू करना हमारा लक्ष्य होगा। डॉ भीम राव अंबेडकर भी इस संहिता के पक्षधर थे। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली सरकार ने 4 फरवरी 2024 को मंत्रिमंडल की बैठक में समान नागरिक संहिता के मसौदे को मंजूरी दी। उसके बाद उत्तराखंड विधानसभा में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) बिल रखा गया। विधान सभा में 80 प्रतिशत सहमति के साथ प्रस्ताव स्वीकृत किया गया। इस प्रकार उत्तराखंड विधानसभा में यूसीसी बिल पास होने के बाद उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। विधान सभा में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि “आज इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनते हुए, न केवल इस सदन को बल्कि उत्तराखंड के प्रत्येक नागरिक को गर्व की अनुभूति हो रही है।” उन्होंने प्रेस को बताया कि 12 फरवरी 2022 को लिया संकल्प आज पूरा हुआ है। इस विधेयक की मांग पूरे देश को थी, जिसे आज देवभूमि में पारित किया गया। समान नागरिक संहिता लागू हो जाने पर विशेष रूप से अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं की स्थिति में व्यापक सुधार आयेगा। “समान नागरिकता संहिता” बन जाने के बाद उनके लिए अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार जताने और गोद लेने जैसे मामलों में एक समान नियम लागू हो सकेगा। समान नागरिक संहिता लागू होने से में सभी धर्मों, समुदायों के लिए एक सामान, एक बराबर कानून होगा। अब लगता है कि पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास होगा। उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता बिल के लागू होने के बाद राज्य में बहु विवाह पर रोक, एक पति या पत्नी के जीवित रहते कोई नागरिक दूसरा विवाह नहीं कर सकेगा, ‘लिव-इन’ में रहने वाली महिला को अगर उसका पुरूष साथी छोड़ देता है तो वह उससे गुजारा-भत्ता पाने का दावा कर सकगी, हलाला और इद्दत पर रोक होगी, तलाकशुदा पति या पत्नी का एक दूसरे से पुनर्विवाह बिना किसी शर्त के अनुमन्य होगा, वहीं पुनर्विवाह से पहले उन्हें किसी तीसरे व्यक्ति से विवाह करने की आवश्यकता नहीं होगी। उत्तराखंड में आबादी की 82.97 प्रतिशत हिन्दू, 13.95 प्रतिशत मुस्लिम, 2.34 प्रतिशत सिख और 0.74 प्रतिशत अन्य धर्म के लोग है। जबकि मिजोरम में 87.16 प्रतिशत ईसाई, 1.35 प्रतिशत मुस्लिम, 2.75 प्रतिशत हिन्दू और 8.74 प्रतिशत अन्य धर्म के लोग है। वहीं लक्ष्यद्वीप में 96.58 प्रतिशत मुस्लिम, 2.77 प्रतिशत हिन्दू, 0.49 प्रतिशत ईसाई और 0.16 प्रतिशत अन्य लोग है। देखा जाय तो गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय समान नागरिक संहिता को लागू करने का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख मुद्दों में शामिल था। समान नागरिक संहिता को लेकर देश में समय-समय पर बहस होते रही है और लोग अपने विचार रखते रहे हैं। अपने विचारों में कोई इसे एक खास धर्म के खिलाफ बताते है, तो कोई इसे देश हित में बताते है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब राजद के साथ सरकार में थी तो उन्होंने बिहार में लागू नहीं करने की बात कहते थे। अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू भारतीय जनता पार्टी के साथ बिहार में सरकार चला रही है। चर्चा चल रही है कि 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी समान नागरिक संहिता कानून बना सकती है। ऐसे भी समान नागरिक संहिता भाजपा के एजेंडे में जनसंघ काल से ही रहा है और पार्टी तमाम अवसरों पर इसे लागू करने की प्रतिबद्धता भी जताती रही है। भारत में आपराधिक कानून और उस पर सजा का प्रावधान सभी धर्मों के अनुयायियों पर समान रूप से लागू होता है, यानि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में सभी धर्म के लोगों के लिए सजा का कानून समान है। ऐसी स्थिति में प्रश्न यह उठता है कि “फैमली लॉ” में समानता क्यों नहीं होनी चाहिए? सभी दलों को समान नागरिक सहिता लागू करने के लिए सामूहिक प्रयास करना चाहिए। यह राष्ट्र और मानवता के लिए अच्छा होगा। क्योंकि अगर कोई पुरुष किसी महिला से शादी करता है तो नैसर्गिक है। लेकिन कोई एक से ज्यादा शादी करता है, तो अप्राकृतिक होगा। समाज को धार्मिक संकीर्णता छोड़कर “समान नागरिक संहिता” की बात करनी चाहिए। समान नागरिक संहिता लागू होने पर ऐसा लगता है कि अल्पसंख्यक देश के मुख्य धारा में आ जायेंगे। उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता बिल के लागू होने के बाद देहरादून स्थित जामा मस्जिद शहर काजी मोहम्मद अहमद कासमी, मुस्लिम सेवा संगठन के अध्यक्ष नईम कुरैशी, इमाम संगठन के अध्यक्ष मुफ्ती रईस, नुमाइंदा ग्रुप याकूब सिद्दीकी, लताफत हुसैन और राज्य बेग, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी, बोर्ड के महासचिव मोहम्मद फजलुर्रहीम मुजद्दीदी, ऑल इंडिया मजलिस ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी समेत देश भर में मुस्लिम रहनुमाई का दम भरने वाले आज कई नेता है जो कि यूनिफॉर्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) का खुलकर विरोध कर रहे हैं। जबकि मुझे लगता है कि अच्छा यह होगा कि इसकी खूबियों को सभी मुस्लिम समझें, विरोध छोड़ उत्तराखंड सरकार की इस निर्णय पर उसकी प्रशंसा करने के लिए आगे आएं। वहीं आज जरूरत इस बात की भी है कि जो पहल उत्तराखंड से शुरू हुई है, वह रुके नहीं, और देश के अन्य राज्य और केन्द्र सरकार को भी इस पर विचार कर, कानून बनाने पर पहल करना चाहिए।

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