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प्रासांगिक लेखन से इतिहास को एक सशक्त प्रामाणिक पहचान प्रदान की जा सकती है : प्रो संजय कुमार

आर्थिक इतिहास लेखन के विभिन्न विचारधाराओं को अनुसंधान हेतु जानना आवश्यक है लेकिन साक्ष्यों के आलोक में अपने समय की प्रासांगिक लेखन से इतिहास को एक सशक्त प्रामाणिक स्वरूप और पहचान प्रदान की जा सकती है

पटना। शुक्रवार को स्नाकोत्तर इतिहास विभाग एवं अर्थशास्त्र विभाग, पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय पटना के संयुक्त तत्वावधान में भारतीय आर्थिक इतिहास लेखन की राष्ट्रवादी तथा मार्क्सवादी अवधारणा विषय पर व्याखान का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता के रुप में उत्तराखण्ड से आए प्रो संजय कुमार ने अपने व्याख्यान में भारतीय इतिहास लेखन की परम्परा परिर्वतन और निरंतरता को चिन्हित किया। आयोजन सचिव डॉ अविनाश कुमार झा ने बताया कि प्रत्येक वर्ष नियमित अन्तराल में शोधार्थियो के बीच इतिहास चेतना को विकसित करने के लिए इस तरह के व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। नव वर्ष में यह पहली शुरूआत रही। यह व्याख्यान में इतिहास एवं अर्थशास्त्र विभाग के शोधर्थियो ने अपनी उपस्थिति दर्ज की। कार्यक्रम की अध्यक्षता अर्थशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो ब्रजेश पति त्रिपाठी ने किया। मंच संचालन डॉ बिनोद कुमार मंगलम ने किया। डॉ अनवरूल हक, डॉ अशोक कुमार, बृजबिहारी पांडे, डॉ शिव कुमार यादव, राकेश कुमार, सलोनी, हिमांशु, नादिरा सहित अनेक विद्वतजनों, शोधार्थियों एवं छात्र छात्राओं की भागेदारी रही। व्याख्यान के अंतर्गत गुणवत्ता युक्त मौलिक एवं अद्यतन प्रासंगिक विषय को लेकर वैज्ञानिक प्रामाणिक शोध कार्य हेतु विषय पर लेखन की समाज विज्ञान की अवधारणा को स्पष्ट किया गया, विषय एवं ज्ञान के विकास में शोध की प्रासंगिकता पर अकादमिक संवाद तथा आगे के पक्षों के ऊपर विमर्श किया गया। प्रो छाया सिन्हा, एवं प्रो योगेन्द्र कुमार, प्रो राजीव रंजन ने इस आयोजन की प्रासंगिकता को दर्शाया। स्नातकोत्तर इतिहास विभाग के इस आयोजन के वक्ता प्रो संजय कुमार ने संबोधित करते हुए आर्थिक इतिहास लेखन के आरम्भ से वर्तमान तक की चर्चा करते हुए जेम्स मिल मैक्स मुलर तथा मार्क्स की अवधारणा को भारत के सन्दर्भ में विस्तार से दर्शाते हुए कहा कि तीनों विद्वानों ने कैसे बिना भारत आए भारत के बारे में विस्तार से लिखा। इस क्रम में ए एल वासम, डेविड लॉरेंज के शोध कार्य की चर्चा द्वारा स्रोत के सिमित्ता के बावजूद विभिन्न भारतीय पक्षों पर उनके कार्य के स्वरूप पर विस्तार से चर्चा की। प्रो त्रिपाठी ने अध्यक्षीय संबोधन में अकादमिक गंभीरता के साथ अर्थ की महत्ता तथा इसके विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला। प्रो मंगलम ने इसकी महत्ता तथा संवेदनशीलता के साथ इसके प्रयोग से अवगत कराया। अकादमिक कार्य की गम्भीरता तथा अन्तर विषयक अवधारणा की प्रासंगिकता, शोध हेतु मौलिक विचार तथा गुणवत्ता युक्त पक्ष को उजागर किया। इतिहास विभाग के डॉ अविनाश कुमार झा ने विषय की महत्ता के साथ सभी अतिथियों एवं विद्वतजनों को धन्यवाद ज्ञापित किया।

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