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दुर्लभ बीमारियों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है दुर्लभ रोग दिवस (रेयर डिजीज दिवस)

पटना। दुर्लभ रोग दिवस (रेयर डिजीज दिवस) प्रत्येक वर्ष फरवरी महीने के आखिरी दिन मनाया जाता है। इस वर्ष यह 28 फरवरी, 2023 को पड़ रहा है। यह दिन दुर्लभ बीमारियों के प्रति जागरूकता बढ़ाने और दुर्लभ बीमारियों वाले व्यक्तियों और उनके परिजनों के लिए उपचार और चिकित्सा तक पहुंचने और उसमें सुधार लाने के उद्देश्य से मनाया जाता है। “रेयर डिजीज दिवस” पहली बार यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर रेयर डिजीज और इसके राष्ट्रीय गठबंधन परिषद द्वारा 2008 में शुरू किया गया था।

भारत सरकार ने दुर्लभ बीमारियों के लिए वर्ष 2021 में “रेयर डिजीज पॉलिसी” की घोषणा की है और इसे वर्ष 2022 में संशोधन किया है। “रेयर डिजीज पॉलिसी” में तीन श्रेणियां बनाई थी, जिसमें पहली श्रेणी में ऐसी दुर्लभ बीमारियों को रखा गया है जिसका एक बार इलाज करने में बीमारी दूर हो जाती है। वहीं दूसरी श्रेणी में वैसी बीमारी को रखा गया है, जिसका इलाज अधिक दिन (लंबा समय) तक चलता है लेकिन इस पर खर्च कम आता है और तीसरी श्रेणी में वह बीमारी है जिसका इलाज अधिक दिन (लंबा समय) तक चलता है और इस पर खर्च भी अधिक होता है। तीसरी श्रेणी की बीमारियों में जीन थेरेपी, स्टेम सेल्स थेरेपी देनी पड़ती है और इस पर करोड़ों रुपये खर्च होते है।“रेयर डिजीज” में जो श्वसन तंत्र और पाचन तंत्र को प्रभावित करता है “सिस्टिक फाइब्रोसिस”, जो ब्रेन और नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है “हंटिंगटन डिजीज” और जो मांसपेशियों को प्रभावित करता है “मस्क्यूलर डिस्ट्रोफी” है। इसके इलाज कराने पर 16-17 करोड़ रुपये खर्च हो जाते है। “रेयर डिजीज” में हर मरीज के लक्षण अलग-अलग होते है। पहले बीमारियों की पहचान में औसत 4-5 वर्ष लग जाता था, लेकिन अब नये तकनीक और जागरूकता से पहचान में समय कम लग रहा है। इसमें कई बीमारियों ऐसी होती है जिसकी लक्षण दिखने तक बीमारी गंभीर हो जाता है।दुनिया में सात हजार से अधिक बीमारियां है, जिसमें से, 500 से अधिक बीमारियों का इलाज संभव है, जबकि इसमें से 50 फीसदी बीमारियां बच्चों में देखने को मिलती है। बच्चों के जन्म के साथ एक जांच होती है , जिसे “डीबीएस यानि ड्राई वल्ड स्पॉट” टेस्ट करते है। इस टेस्ट की वजह से कुछ रेयर बीमारियों की जांच संभव होता है।
“रेयर डिजीज” के लिए कोई स्थाई गाइड लाइन अभी तक नहीं बना है। अमेरिका में यह माना जाता है कि यदि कोई बीमारी 1500 लोगों में से किसी एक को होता है तो इसे “रेयर डिजीज” माना जाता है, जबकि भारत में 2500 में से किसी एक को होती है तब वह बीमारी “रेयर डिजीज” माना जाता है। भारत में तरह की डीजीज का आंकड़ा अनुमानतः करीब 7 करोड़ के आसपास है।“रेयर डिजीज” प्रायः देखा गया है कि 80 प्रतिशत जीन में खराबी के कारण होती है वहीं कुछ मामलों में बैक्टीरिया, वायरस, इंफेक्शन, एलर्जी आदि के कारण भी होते है। भारत सरकार ने “रेयर डिजीज पॉलिसी” के अन्तर्गत हर राज्य में मरीजों के लिए अलग-अलग अस्पतालों को नोडल सेंटर बनाया है, जिसमें पहली श्रेणी और दूसरी श्रेणी को आर्थिक मदद दे रही है, जबकि तीसरी श्रेणी के मरीजों के लिए “क्राउडफंडिंग” की बात कही गई है।

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