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देश की खेती में बिहार का योगदान अहम : अग्रवाल

उत्पादन लागत कम होने पर किसानों की बढ़ेगी आय : डॉ विजय पॉल
न्यूनत्तम समर्थन मूल्य निर्धारण हेतु कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की बैठक का आयोजन

पटना। बिहार कृषि की भूमि है, यहां हमने खेती की विषम एवं आधुनिक परिस्थितियों को देखा है। यहां के युवा नई तकनीक के साथ खेती करते है, तो वहीं पुराने लोग भी परंपरागत रूप से खेती कर रहे हंै। देश के कई राज्यों में खेती करने में बिहार के मजदूर का अहम योगदान रहा है। यहां के लोगों को किसानी का अच्छा अनुभव है। उन्होंने कहा कि बिहार राज्य एग्रो इकोनोमी में काफी मजबूत रही है। ये बातें कृषि सचिव संजय कुमार अग्रवाल ने कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के अध्यक्ष प्रो विजय पॉल शर्मा के साथ बामेती सभागार में आयोजित रबी विपणन मौसम, वर्ष 2024-25 में रबी फसलों की न्यूनत्तम मूल्य निर्धारण के लिए भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के प्रतिनिधियों की बैठक में कही। इस बैठक में बिहार, पश्चिम बंगाल, उडी़सा, छत्तीसगढ एवं झारखण्ड राज्य के कृषि विभाग के पदाधिकारी, कृषि वैज्ञानिक तथा प्रगतिशील किसानगण भाग लिये। श्री अग्रवाल ने कहा कि यहां ग्रामीण जनसंख्या सर्वाधिक है, जिसकी खेती पर निर्भरता भारत में सबसे ज्यादा है। बिहार में सरकार द्वारा तीन-तीन कृषि रोड मैप को बनाकर कार्यान्वित किया जा चुका है तथा चैथा कृषि रोड मैप बन रहा है। कृषि लागत मूल्य बढ़ा है। एग्रीकल्चर प्राइसिंग एक महत्त्वपूर्ण विषय हो गया है। कृषि में नई चुनौतियां आई है, इसे निपटना आवश्यक है। उन्होंने कहा यदि किसान की आय पर्याप्त नहीं होगी, तो वे बाहर जाने को मजबूर होंगे। फसलों का लागत मूल्य बढ़ा है, इसे कैसे कम किया जाये, इस ओर विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है। इसमें कृषि विश्वविद्यालयों की बड़ी भूमिका होगी। इस मौके पर कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के अध्यक्ष ने कहा कि पहले यह बैठक दिल्ली में हुआ करती थी, जिसमें पर्याप्त समय नहीं मिल पाता था, ना ही ज्यादा लोग आ पाते थे। इसको ध्यान में रखते हुए हमने सोचा कि आयोग को ही किसानों पास जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके पूर्व 2019 में खरीफ मौसम के लिए कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की बैठक बिहार में हुई थी। यह बिहार में दूसरी बैठक है। उन्होंने कहा कि न्यूनत्तम समर्थन मूल्य में एक बहुत महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। यह आयोग के लिए चुनौती है। इससे किसान, उद्यमी आदि प्रभावित होते हैं। फसलों के उत्पादन में लागत मूल्य बहुत बड़ा फैक्टर है। आज उपभोगता की माँग बदल रहा है। हमें उनकी मांग की हिसाब से फसलों के उत्पादन की योजनाएं बनानी होगी। उन्होंने कहा कि आज 90 प्रतिशत से ज्यादा लघु एवं सीमांत किसान है। उन्होंने कहा कि उत्पादन लागत कम होने पर किसानों की आय बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि बिहार में मक्का की उत्पादकता राष्ट्रीय औसत से अधिक है, साथ ही, विगत वर्षों में गेहूं की उत्पादकता में भी वृद्धि हो रही है। मसूर उत्पादन 05-06 साल में बढ़ा है। पूर्वोत्तर राज्य में किसानों को संस्थागत ऋण की उपलब्धता एक चुनौती है। ऋण की साथ-साथ सिंचाई की सुविधा पर भी कार्य किया जाना है। कृषि निदेशक डॉ आलोक रंजन घोष ने कहा कि 2008 से 2023 तक 03-03 कृषि रोड मैप कार्यान्वित किया गया है, जिससे बिहार में फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि हुई है। बिहार को पाँच-पाँच कृषि कर्मण पुरस्कार प्राप्त हुए है। गेहूं एवं मक्का के औसत उत्पादन में वृद्धि हुई है। चौथे कृषि रोड मैप में जलवायु परिवर्तन, फसल विविधता, जैविक खेती, मोटे अनाज को प्राथमिकता दिया गया है।

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