मोटे अनाज से कुपोषण से मुक्ति
फतुहा। कुपोषण से कैसे मुक्ति पाएं इस संदर्भ में मां तारा उत्सव पैलेस गोविंदपुर फतुहा में एक आयोजन की गई जिसका अध्यक्षता अनिल कुमार शर्मा तथा मुख्य अतिथि डॉ लक्ष्मी नारायण सिंह पटेल थे। मुख्य अतिथि लक्ष्मी नारायण सिंह पटेल ने कहा कि जंक फूड के जग में विश्व को मोटे अनाज का महत्व समझाने की पहल तो भारत ने 2018 को शुरुआत करनी थी। भारत द्वारा मोटे अनाज के महत्व को एक बार फिर समझाने के लिए 2021 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष घोषित करने का प्रस्ताव रखा। तो दुनिया के 72 देशों ने भारत के प्रस्ताव को समर्थन किया। वह दिन दूर नहीं जब दुनिया के देश हमारे बाजरे के स्वाद रूबरू होने लगेंगे। आज मोटे अनाज को देश और विदेश दोनों ही जगह लोकप्रिय बनाना शुरू हो गया है। अब भारत के मोटे अनाज खासतौर से बाजरा को दुनिया के देशों में पहुंचाने की योजना आरंभ हुई है। सरकार ने विदेशों में मोटे अनाज को लोकप्रिय बनाने और बाजरा आदि के निर्यात को बढ़ाने का पूरा रोड मैप तैयार कर आरंभ कर दिया है। दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसदों को मोटे अनाज से तैयार व्यंजनों से लंच दिया जा चुका है अन्य आयोजन में भी मोटे अनाज से तैयार भेजने को ही प्रमुखता से स्थान दिया जा रहा है।बाजरा एवं अन्य मोटे अनाज और उससे तैयार उत्पादों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तैयार करने की सकारात्मक शुरुआत हुई है जिसके परिणाम प्राप्त भी होने लगे हैं।
पहले जब घर पर कोई मेहमान आता था या त्यौहार होता था तभी घर में चावल और गेहूं की चपाती बना करती थी। पहले दिन प्रतिदिन सर्दियों में बाजरा, मक्का की रोटी ,बाजरा या मक्का, दलिया गर्मियों में जयका दलिया और इसके साथ ही इसी तरह से मोटे अनाज की रोटी और हरी सब्जियां जिसे गांव देहात में बड़े चाव के साथ खाते थे ।एक बार चला दौड़ जब मोटे अनाज की जगह गेहूं ले ली,आज तो लोग गेहूं चावल को भी छोड़कर जंक फूड पर जोर देने लगे हैं जिसके परिणाम साफ-साफ दिखाई देने लगे हैं, दवाइयों के सहारे जीवन जीने लगा है ,यूनिटी भी बुरी तरह से प्रभावित होने लगी है यह तो रही एक बात अब यदि हम खेती किसानों की भी चर्चा करें तो देखें कि मोटे अनाज की खेती कम लागत और पानी की खेती होती है। दूसरी बात यह है कि रोग भी कम होते थे।
एक बात और है कि मोटे अनाज रखवा धीरे-धीरे घटने के बावजूद यदि बात करें तो सारी दुनिया में उत्पादित कुल बाजरे का 41 प्रतिशत भारत में उत्पादित होता है।राजस्थान में खरीफ की फसलों आज सभी राजनीतिक दल के समर्थक संगठन किसानों की आय बढ़ाने की बात कर रहे हैं तो यह भी साफ हो जाना चाहिए कि मोटे अनाज की मार्केटिंग सही तरीके से होती है और इसके उत्पादों को बाजार में रणनीति के साथ उतारा जाता है तो इसका फायदा किसानों को ही होना है। यह अपने आप में कटु सत्य है। जंक फूड के रुप में आए दुनिया के देशों को मोटे अनाज महत्व समझाने की पहल भारत में 2018 को शुरू कर दी गई थी, उसी का परिणाम रहा कि मार्च 2020 में भारत द्वारा मोटे अनाज के महत्व को एक बार फिर समझाने के लिए 2023 को राष्ट्रीय वर्ष घोषित करने का प्रस्ताव रखा तो दुनिया के 72 देशों ने भारत के प्रस्ताव को समर्थन किया और योजनाबद्ध तरीके से विश्व में भारत के मोटे अनाज के निर्यात को बढ़ावा देने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। डॉ लक्ष्मी नारायण सिंह पटेल ने कहा कि अब साफ हो गया है कि विदेशों में बाजरा सहित भारतीय मोटे अनाज की मांग बढ़ेगी और इसका सीधा लाभ देश के किसानों को भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मिलेगा अब सरकार को मोटे अनाज का रकबा बढ़ाने एवं कम समय कम लागत में अधिक उत्पादन देने वाले किसने, विकसित करने जैसे ठोस कदम भी उठाने पड़ेंगे जिससे देशी और विदेशी दोनों स्तर पर लाभ मिल सके इस अवसर पर पूर्व नगर अध्यक्ष शोभा देवी, पूर्व भाजपा मीडिया शोभा पटेल, अंकुश कुमार, आशीष कुमार, पूजा कुमारी ,अमीषा कुमारी, सीमा कुमारी, सत्येंद्र पासवान आदि मौजूद थे।