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चारों तरफ पानी ही पानी, मची हुई है चित्कार : डॉ लक्ष्मी नारायण

फतुहा। हम सब देख रहे हैं उत्तर भारत, उत्तराखंड, हिमाचल, मध्य प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के हालात बेहद गम्भीर हैं। हमें हर तरफ बाढ़ का पानी नजर आ रहा है। चाहे वो बरसात का पानी हो या पड़ोसी राज्यों द्वारा छोड़ा हुआ पानी। ऐसा लग रहा है कि सावन के महीने में इन्द्रदेव की कोपलीला से जूझ कर ही हर किसी को पार जाना है।
सब तरफ बुरी हालत है और सोशल मीडिया पर इतनी भयानक तस्वीरें आ रही हैं जिसको देखकर दिल दहल जाता है। कहीं कारें पानी में बह रही हैं, कहीं घर ढह रहे हैं। कइयों के घरों में पानी आ गया, कई लोग छतों पर रह रहे हैं। लाइट नहीं है, कहीं लोग फंसे हुए हैं तो लोग उन्हें पार लगा रहे हैं। एनडीआरएफ की टीम बहुत मेहनत कर फंसे लोगों को निकाल रही है, फिर भी कई लोगों की मृत्यु हुई है।
साथ ही साथ बहुत अच्छी वीडियो भी आ रही है कि कैसे लोग फंसे लोगों की मदद कर रहे हैं। सबसे ज्यादा पंजाब में ​सिख युवकों की ओर से समाजसेवी आगे आकर मदद कर रहे हैं, लंगर लगा रहे हैं। इस समय सबको हाथ बढ़ाने की जरूरत है। कोई पार्टी न देखे और न यह देखे किसने पानी छोड़ा, कौन गुनहगार है। इस समय तो बाढ़ में फंसे लोगों की हर तरह से मदद की जरूरत है।
दिल्ली में पिछले दिनों लोगों को बाढ़ से जो दिक्कत हुई उस पर आने से पहले मैं अंबाला से राजपुरा लुधियाना की ओर जा रहे हाईवे की बात करता हूं जहां राजपुरा के पास घाघर नदी पर बना पूरा पुल टूट गया। सैकड़ों गाडि़यां पानी में तैरने लगी लेकिन वहां की बहादुर सिख कौम ने पानी में उतरकर पूरे दिन और रात जान और माल की रक्षा की। मुसीबत और आफत में मिलकर सामना करने की ललक हमें हर आफत पर विजय दिलाती है। ऐसी इंसानी ललक दिल्ली जैसे शहर में भी होनी चाहिए। सवाल उठ हरियाणा या दिल्ली के बीच अतिरिक्त पानी छोड़े जाने का नहीं है लेकिन जो लोग अतिरिक्त पानी छोड़े जाने से प्रभावित होते हैं या ड्यूटी पर जा रहे होते हैं।
देश के शहरों और गांवों को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए अब शहरी विकास के लिए नए ढंग से सोंचना होगा, हमें समाधान खोजना होगा वरना भयंकर परिणाम भुगतेंगे।

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