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लोहार उपजाति नहीं बल्कि लोहार मूल जाती है : डॉ. उमेश चंद्र

मोतिहारी। विश्वकर्मा सेना के राष्ट्रीय संयोजक डॉ उमेश चंद्रा ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया कि 15 अप्रैल 2023 से बिहार सरकार जातीय जनगणना कराने जा रही है। उसमें लोहार को कमार का उपजाति बताया गया है ।जो पूर्णता गलत है, लोहार उपजाति नहीं बल्कि लोहार मूल जाती है। डॉक्टर चंद्रा ने कहा कि पहले से ही लोहार और लोहरा में फर्क बता करके इस जाति को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी से बाहर कर दिया गया। जबकि अंग्रेजी मे LOHARA और हिंदी में लोहार होता है। यह घटना पहली बार नहीं है। 1993 में भी राजद की सरकार ने ऐसा ही किया था। अब मूल समस्या यह है कि सरकार लोहार जाति को मूल जाति मानने से इंकार कर रही है। ताकि लोहार का अस्तित्व ही समाप्त किया जा सके और जब केंद्र सरकार बिहार सरकार से रिपोर्ट मागेगी की बिहार में लोहार जनजाति की संख्या कितनी है, उस वक्त बिहार सरकार का रिपोर्ट होगा कि बिहार में लोहार जाति है ही नहीं। यहां तो कमार जाती है। इस आरक्षण के चक्कर में लोहार जाति के हजारों छात्र नौजवान बेरोजगार हो गए। बहुत सारी नौकरियों में एग्जाम पास करने के बाद भी जॉइनिंग नहीं हो पाई। कुछ लोगों की जॉइनिंग हुई तो उन्हें भी दिन-रात इस बात का डर लगा रहता है कि सरकार उनके साथ कब क्या करेगी ।हाल ही में 3 अप्रैल 2023 को पटना, गर्दनीबाग में धरना प्रदर्शन के बाद सरकार को सीधा सीधा मैसेज दिया जा चुका है कि बिहार के लोहार जाति के लिए एक अलग कोड जारी करके जातिय जनगणना करावे अन्यथा यह मुद्दा बहुत बड़ा आंदोलन का रूप ले लेगा। चुकी बिहार में लोहार समाज की जनसंख्या 40 लाख से ज्यादा है, जो किसी भी चुनाव में निर्णायक भूमिका अदा करती है। इस समाज के साथ अनदेखी किसी गहरी साजिश का नतीजा है। आजादी के बाद अगर हिंदुस्तान में किसी जाति के साथ सबसे ज्यादा अन्याय हुआ है, तो वह लोहार जाति है।

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