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वैद्यनाथ धाम एक सिद्धपीठ अौर “कामना लिंग” भी!

वैद्यनाथ मन्दिर भारतवर्ष के झारखण्ड राज्य के देवघर नामक स्‍थान में अवस्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है। शिव का एक नाम ‘वैद्यनाथ भी है, इस कारण लोग इसे ‘वैद्यनाथ धाम’ भी कहते हैं। यह एक सिद्धपीठ है। इस कारण इस लिंग को “कामना लिंग” भी कहा जाता हैं।

देवघर में शिव का अत्यन्त पवित्र और भव्य मन्दिर स्थित है। हर वर्ष सावन के महीने में स्रावण मेला लगता है जिसमें लाखों श्रद्धालु “बोल-बम!” “बोल-बम!” का जयकारा लगाते हुए बाबा भोलेनाथ के दर्शन करने आते हैं। ये सभी श्रद्धालु सुल्तानगंज से पवित्र गंगा का जल लेकर लगभग सौ किलोमीटर की अत्यन्त कठिन पैदल यात्रा कर बाबा को जल चढाते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार दशानन रावण भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर तप कर रहा था, वह एक-एक करके अपने सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ा रहा था। 9 सिर चढ़ाने के बाद जब रावण 10वां सिर काटने वाला था तो भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और उससे वर मांगने को कहा- तब रावण ने ‘कामना लिंग’ को ही लंका ले जाने का वरदान मांग लिया। रावण के पास सोने की लंका के अलावा तीनों लोकों में शासन करने की शक्ति तो थी ही साथ ही उसने कई देवता, यक्ष और गंधर्वो को कैद कर के भी लंका में रखा हुआ था। इस वजह से रावण ने ये इच्छा जताई कि भगवान शिव कैलाश को छोड़ लंका में रहें, महादेव ने उसकी इस मनोकामना को पूरा तो किया पर साथ ही एक शर्त भी रखी। उन्होंने कहा कि अगर तुमने शिवलिंग को रास्ते में कही भी रखा तो मैं फिर वहीं रह जाऊंगा और नहीं उठूंगा, रावण ने शर्त मान ली, इधर भगवान शिव की कैलाश छोड़ने की बात सुनते ही सभी देवता चिंतित हो गए, इस समस्या के समाधान के लिए सभी भगवान विष्णु के पास गए। तब श्री हरि ने लीला रची। भगवान विष्णु ने वरुण देव को आचमन के जरिए रावण के पेट में घुसने को कहा। इसलिए जब रावण आचमन करके शिवलिंग को लेकर श्रीलंका की ओर चला तो देवघर के पास उसे लघुशंका लगी, ऐसे में रावण एक बैजू नाम के अहीर को शिवलिंग देकर लघुशंका करने चला गया। कहते हैं उस बैजू अहीर के रूप में भगवान विष्णु थे। शिवलिंग के बढ़ते भार के से तंग आ कर बैजू अहीर ने शिवलिंग धरती पर रखकर स्थापित कर दिया। जब रावण लौट कर आया तो लाख कोशिश के बाद भी शिवलिंग को उठा नहीं पाया। तब उसे भी भगवान की यह लीला समझ में आ गई और वह क्रोधित हो शिवलिंग पर लात मारकर फिर अपना अंगूठा गढ़ाकर चला गया। वहा छुपकर बैजू यह सब देख रहा था, उसे लगा बाबा जी को भक्ति करने का यही तरीका है तब से बैजू का दिनचर्या बन गया वह रोज शिवलिंग पर चार लाठी मारता फिर अंगूठे से शिवलिंग को दबा कर महादेव की भक्ति में लीन हो जाता था। एक दिन बैजू को बहुत जोर से भूख लगी,जब वह घर जा कर जैसे ही अन्न मुंह में डाला बैजू को याद आया आज तो भोले बाबा की भक्ति नहीं की बैजू अपना भोजन छोड़ लाठी ले कर दौरा दौरा जाता इस बार जैसे ही शिवलिंग पर प्रहार कर रहा होता साक्षात महादेव प्रकट हो जाते,महादेव बोले, बैजू मै तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हुआ हूं। बैजू महादेव को देख कर उनके चरणों में गिर गया और बोला महादेव मैंने रावण को देखा था ऐसा करते तो मुझे लगा ऐसी ही आपकी भक्ति की जाती है। महादेव बैजू को गले लगाए और बोले बैजू तुम ने ह्र्दय से मेरी भक्ति की है आज से संसार तुम्हे मेरे सबसे उच्च भक्त के नाम से जानेगी, मेरे नाम से पहले तुम्हारा नाम लिया जाएगा और यह स्थान बाबा बैजनाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध होगी। उसके बाद ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने आकर इस शिवलिंग की पूजा की।शिवजी का दर्शन होते ही सभी देवी देवताओं ने शिवलिंग की उसी स्थान पर स्थापना कर दी और शिव-स्तुति करके वापस स्वर्ग को चले गए। तभी से महादेव ‘कामना लिंग’ के रूप में देवघर में विराजते हैं। इधर ब्रह्मा,विष्णु आदि देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की। जनश्रुति व लोक-मान्यता के अनुसार यह वैद्यनाथ-ज्योतिर्लिग मनोवांछित फल देने वाला है।

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